नारायण सेवा संस्थान के मंदिर का लोकार्पण: चेतना जागृति का केंद्र
बाराबंकी में नारायण सेवा संस्थान के लक्ष्मी नारायण मंदिर का उद्घाटन समारोह आयोजित हुआ, जिसमें दत्तात्रेय होसबाले ने मंदिर के महत्व और समाज सेवा पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं, बल्कि चेतना जागृति का केंद्र है। कोरोना महामारी के दौरान की गई सेवाओं का उल्लेख करते हुए, उन्होंने ग्राम विकास और सामाजिक जिम्मेदारी पर भी प्रकाश डाला। इस कार्यक्रम ने मंदिर के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा दी।
Sep 24, 2025, 11:31 IST
लोकार्पण कार्यक्रम में मुख्य अतिथि का संबोधन
बाराबंकी, उत्तर प्रदेश। बरेठी में नारायण सेवा संस्थान के लक्ष्मी नारायण मंदिर के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि मंदिर केवल पुण्य कमाने का स्थान नहीं है, बल्कि यह अंतः चेतना जागरूकता का केंद्र है। मंदिर मानवता की सेवा और दूसरों के दुखों को दूर करने की प्रेरणा देता है।
कोरोना महामारी के दौरान सेवा कार्य
सरकार्यवाह जी ने कोरोना महामारी का उल्लेख करते हुए कहा कि संकट के समय में कई सकारात्मक कार्य भी सामने आते हैं। महामारी के दौरान, कई संस्थाओं ने लोगों की सेवा और रोजगार प्रदान करने का कार्य किया। संघ के स्वयंसेवकों ने भी इस दौरान महत्वपूर्ण सेवाएं दीं। इसी प्रेरणा से 'नारायण संस्था' का गठन हुआ, जिसके परिसर में हम आज उपस्थित हैं।
संस्थान की महत्वता
उन्होंने कहा कि समाज में कार्य करने वाली कोई भी संस्था उसके बैंक बैलेंस से नहीं, बल्कि उसके संचालकों की सोच और कार्यों से बड़ी होती है। कोरोना काल के दौरान शुरू हुई यह संस्था अब न्यास बन गई है, और इस गांव में विभिन्न कार्यों के साथ मंदिर की स्थापना की गई है।
मंदिर का उद्देश्य
मंदिर निर्माण के संदर्भ में उन्होंने कहा कि यह अंतः चेतना जागृत करने के लिए आवश्यक हैं। एक भक्त ने प्रश्न किया कि भगवान सर्वत्र हैं, तो मंदिर में पूजा क्यों की जाए? इस पर एक भक्त ने उत्तर दिया कि जैसे साइकिल में हवा कम होने पर हम पंप से हवा भरते हैं, वैसे ही भगवान की उपासना के लिए मंदिर की आवश्यकता होती है। मंदिर एकता का प्रतीक है और यह आगम शास्त्र के अनुसार स्थापित किया गया है।
ग्राम विकास की दिशा में मंदिर का योगदान
दत्तात्रेय होसबाले ने मंदिर केंद्रित ग्राम विकास पर चर्चा करते हुए कहा कि समाजसेवी अन्ना हजारे ने रालेगण सिद्धि गांव में जनचेतना जगाकर इस दिशा में कार्य शुरू किया। उन्होंने बताया कि यह प्रेरणा उन्हें मंदिर केंद्रित व्यवस्था से मिली। इसी तरह, एक स्वयंसेवक ने कर्नाटक के एक गांव में 900 साल पुराने सीताराम मंदिर के आसपास की गंदगी को दूर कर उसे ग्राम चेतना का केंद्र बना दिया।
गांवों का विकास और सामाजिक जिम्मेदारी
गांवों का विकास स्वास्थ्य और शिक्षा पर केंद्रित होना चाहिए। प्रधानमंत्री भी ग्राम विकास और कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। संघ के स्वयंसेवक भी इस दिशा में निरंतर कार्य कर रहे हैं। गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक संस्थाओं को सक्रिय रहना चाहिए। भारत का पुनर्निर्माण केवल दिल्ली में नहीं, बल्कि गांवों से होना चाहिए।
धर्म और अर्थ का संबंध
सरकार्यवाह जी ने कहा कि कौटिल्य के अनुसार, "धर्मस्य मूलं अर्थः" अर्थात धर्म का आधार अर्थ है, और "सुखस्य मूलं धर्म:" अर्थात सुख का आधार धर्म है। जीवन और धन का संबंध नाव और पानी के समान है। धन जीवन को चलाने के लिए आवश्यक है, लेकिन यदि धन ही जीवन पर हावी हो जाए तो विनाश निश्चित है। सत्य, शुचिता, करुणा और तपस्या धर्म के चार स्तंभ हैं। हर गांव में पूजा-अर्चना के स्थान होने चाहिए, जहां लोग अपने अहंकार से मुक्त हो सकें। यह मंदिर आसपास के लिए प्रेरणा का स्रोत बने।