नवरात्रि के नवमी पर कन्या पूजन का महत्व
नवरात्रि के नवमी का विशेष पूजन
नवरात्रि के नौवें दिन, जिसे नवमी कहा जाता है, पूरे देश में कन्या पूजन का आयोजन किया जाता है। इस दिन, नौ कन्याओं की पूजा की जाती है, उनके चरण धोए जाते हैं, और उन्हें देवी के प्रतीक के रूप में सम्मानित किया जाता है। फरीदाबाद के महंत स्वामी कामेश्वरानंद वेदांताचार्य ने इस पूजा की परंपरा और धार्मिक महत्व को विस्तार से समझाया।
कन्याएं देवी के प्रतीक मानी जाती हैं।
महंत स्वामी के अनुसार, माँ देवी के नौ रूप होते हैं, जिन्हें लोग विभिन्न दिनों में पूजा करते हैं। कुछ लोग अष्टमी को पूजा करते हैं, जबकि अन्य नवमी को। इनमें से नौ रूपों में, पांच से सात वर्ष की आयु की कन्याएं देवी के अवतार मानी जाती हैं। इसलिए, नवमी के दिन, पांच से सात वर्ष की आयु की नौ कन्याओं की पूजा की जाती है। उनके चरण धोकर, उन्हें भोजन, वस्त्र और अन्य भेंटें अर्पित की जाती हैं।
कन्या पूजन के दौरान एक छोटे बच्चे को बैठाया जाता है।
कन्या पूजन के दौरान एक छोटे लड़के को भी बैठाया जाता है, जिसे बंदर माना जाता है। इस बंदर का महत्व यह है कि यह माँ देवी के रक्षक, यानी भैरव का प्रतीक है। महंत स्वामी ने बताया कि माँ देवी के मंदिर के पास हमेशा भैरव का एक छोटा मंदिर होता है। भैरव का यह सौम्य रूप माँ देवी के पास सुरक्षा के रूप में बैठता है। काशी में काल भैरव की परंपरा आज भी जीवित है। वहां पुलिस थानों और चौकियों पर भैरव की तस्वीर रखी जाती है, जो उनके रक्षक का प्रतीक है।
एक बच्चा भैरव का प्रतिनिधित्व करता है
नवरात्रि के दौरान, जब नौ कन्याओं की पूजा की जाती है, तो उनके बीच एक बंदर भी बैठाया जाता है। यह लड़का, जिसकी उम्र दस से बारह वर्ष के बीच होती है, भैरव का प्रतिनिधि माना जाता है। कभी-कभी, दो लड़के बैठाए जाते हैं, एक भैरव का और दूसरा गणेश का प्रतिनिधित्व करता है। यह भैरव का सौम्य रूप हमेशा माँ देवी के पास बैठता है ताकि उनकी रक्षा कर सके।
क्या है मान्यता?
महंत स्वामी ने यह भी बताया कि भगवान शिव ने माँ देवी की रक्षा के लिए भैरव जी का अवतार लिया। इसलिए, नवमी के दिन कन्याओं के साथ बंदर की उपस्थिति धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह परंपरा न केवल माँ देवी के प्रति सम्मान दर्शाती है, बल्कि उनकी सुरक्षा और संरक्षण का प्रतीक भी है।
नवमी का महत्व
नवरात्रि का पर्व विशेष है क्योंकि माँ देवी के नौ रूपों के साथ भैरव जी की उपस्थिति यह याद दिलाती है कि शक्ति और सुरक्षा हमेशा एक साथ होती हैं। इस दिन का उत्सव विश्वास, भक्ति और धर्म का संदेश देता है, जिससे हर भक्त के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और विश्वास का संचार होता है। कन्या पूजन के दौरान नवमी पर बंदर की उपस्थिति केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि भैरव जी की माँ देवी की रक्षा और धार्मिक विश्वास में भूमिका का जीवंत प्रतीक है।
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