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दुमका के मो. नौशाद शेख ने साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश की

दुमका के मो. नौशाद शेख ने साम्प्रदायिक सौहार्द की एक अनोखी मिसाल पेश की है। उन्होंने अपने गांव में 40 लाख रुपये खर्च कर भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर बनवाया है, जिससे वे एकता और भाईचारे का संदेश फैलाना चाहते हैं। इस पहल की सराहना मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदायों द्वारा की जा रही है। मो. नौशाद का मानना है कि सभी धर्मों का आदर करना चाहिए और धार्मिक कार्यों में भाग लेना चाहिए।
 

साम्प्रदायिक सौहार्द का अनूठा उदाहरण


दुमका, झारखंड: दुमका के उपराजधानी में मो. नौशाद शेख ने साम्प्रदायिक सौहार्द की एक अनोखी मिसाल पेश की है। इस्लाम के अनुयायी मो. नौशाद की कृष्ण भक्ति इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। उन्होंने अपने गांव में लगभग 40 लाख रुपये खर्च कर भगवान श्रीकृष्ण का एक भव्य मंदिर बनवाया है, जिससे वे एकता, सद्भाव और भाईचारे का संदेश फैलाना चाहते हैं। पेशे से प्रखंड उपप्रमुख, मो. नौशाद सभी धर्मों का सम्मान करते हैं और उनके इस प्रयास की सराहना मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदायों द्वारा की जा रही है.


भारत में जहां धर्म के नाम पर विभाजन बढ़ रहा है, वहीं मो. नौशाद जैसे लोग एकता और अखंडता का संदेश देने में लगे हैं। दुमका के महेश बथान गांव के निवासी मो. नौशाद ने साम्प्रदायिक सौहार्द की एक ऐसी मिसाल पेश की है, जिससे जाति और धर्म की राजनीति करने वाले नेताओं को सीखने की आवश्यकता है.


मो. नौशाद न केवल दूसरे धर्मों का सम्मान करते हैं, बल्कि उनके धार्मिक कार्यों में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। पिछले चार दशकों से कृष्ण भक्ति में लीन मो. नौशाद ने अपने निजी खर्च से भगवान श्रीकृष्ण के पार्थसारथी स्वरूप का मंदिर बनवाने का कार्य शुरू किया है, जो अब अंतिम चरण में है.


वे कहते हैं कि भले ही वे इस्लाम के अनुयायी हैं, लेकिन उन्हें हिंदू धर्म में भी गहरी आस्था है। उन्होंने बताया कि एक बार पश्चिम बंगाल के मायापुर में भगवान श्रीकृष्ण के भव्य मंदिर में जाने के बाद उन्हें स्वप्न में भगवान का संदेश मिला कि वे अपने गांव में एक मंदिर बनाएं। इस प्रेरणा के बाद उन्होंने मंदिर निर्माण का निर्णय लिया.


मो. नौशाद का मानना है कि सभी धर्मों का आदर करना चाहिए और धार्मिक कार्यों में भाग लेना चाहिए, ताकि समाज में सौहार्द और भाईचारा बना रहे.


गांव के जानकार बताते हैं कि लगभग 300 साल पहले बंगाल के हेतमपुर इस्टेट के राजपरिवार ने प्रभु पार्थसारथी की पूजा मिट्टी की प्रतिमा से शुरू की थी। महेश बथान इसी इस्टेट का हिस्सा था। जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद यह पूजा बंद हो गई थी, लेकिन 1980 के दशक में रानीश्वर के प्रमुख मो. कादिर ने इसे फिर से शुरू किया। नौशाद के इस पहल से गांव के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग भी खुश हैं और उनकी सराहना कर रहे हैं.