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दिव्यांग शिक्षक की संघर्ष कहानी: 75% विकलांगता के बावजूद 50 किलोमीटर दूर पदस्थापना

बाबूलाल बैरवा, जो 75% दिव्यांग हैं, अपने घर से 50 किलोमीटर दूर पदस्थापित हैं। उनकी यात्रा में कठिनाइयाँ और दो बार दुर्घटनाएँ उनके संघर्ष को दर्शाती हैं। उन्होंने सरकार से अपने तबादले की गुहार लगाई है, लेकिन उनकी समस्याओं को अनसुना किया जा रहा है। बाबूलाल ने नवाचारों के लिए भी सम्मान प्राप्त किया है। जानिए उनकी पूरी कहानी।
 

बाबूलाल बैरवा का संघर्ष

टोंक। महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय अरनिया माल के शिक्षक बाबूलाल बैरवा 75% दिव्यांग हैं, जिनकी पोस्टिंग उनके घर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। इस दूरी के कारण उन्हें रोज़ यात्रा करने में काफी कठिनाई होती है। उन्होंने कई बार अपने तबादले के लिए अधिकारियों और मंत्रियों से गुहार लगाई, लेकिन सरकार उनकी समस्याओं को अनसुना कर रही है।



बाबूलाल को घर से इतनी दूर यात्रा करने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है, जो उनके लिए एक बड़ी चुनौती है। पिछले वर्ष, 9 सितंबर 2024 को स्कूल जाते समय वह एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। डॉक्टरों ने कहा था कि उनकी स्थिति ठीक नहीं होगी, लेकिन उन्होंने मौत को मात दी। हाल ही में, 3 जुलाई 2025 को फिर से स्कूल जाते समय एक और दुर्घटना में उनका हाथ टूट गया।



सरकार से गुहार


बाबूलाल ने बताया कि उन्होंने शिक्षा विभाग के अधिकारियों, मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री से भी अपने तबादले की मांग की है ताकि उन्हें टोंक सिटी में अपने घर के करीब स्थानांतरित किया जा सके। लेकिन सरकार के प्रतिनिधियों ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया है।


दिव्यांगता की चुनौतियाँ


बाबूलाल ने बताया कि उनकी 75% विकलांगता है। दोनों हाथ और एक पैर सीधा रहता है, जिससे उन्हें खाना और पानी भी दूसरों से लेना पड़ता है। दुर्घटना के बाद, स्कूल आने-जाने में उन्हें और भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि यदि उनकी सुनवाई होती है, तो उन्हें अपनी नौकरी जारी रखने में मदद मिलेगी।


नवाचार में सम्मानित


बाबूलाल स्कूल में कई नवाचारों के लिए प्रयासरत हैं, जैसे खिलौना बैंक की स्थापना और भामाशाहों से धन जुटाना। इसके चलते उन्हें ब्लॉक और जिला स्तर पर सम्मानित किया गया है। जिला प्रशासन टोंक ने भी उन्हें 26 जनवरी को सम्मानित किया था।