दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज पर लगे गंभीर आरोप, समिति ने उठाए सवाल
जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला संसद में चर्चा का विषय
दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ कैश कांड को लेकर संसद की एक स्थायी समिति की बैठक में चर्चा की गई। सूत्रों के अनुसार, समिति के सदस्यों ने यह प्रश्न उठाया कि जब इस मामले में गंभीर आरोप सबूतों के आधार पर लगाए गए हैं, तो अब तक कोई एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई है। इसके अलावा, सदस्यों ने सुझाव दिया कि सुप्रीम कोर्ट के पुराने निर्णय वीरास्वामी केस की समीक्षा की जानी चाहिए। इस निर्णय के अनुसार, किसी भी सिटिंग जज के खिलाफ जांच या एफआईआर दर्ज करने के लिए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की अनुमति आवश्यक होती है।
आचार संहिता बनाने का प्रस्ताव
बैठक में यह भी सुझाव दिया गया कि न्यायाधीशों के लिए एक आचार संहिता बनाई जाए, जिससे उनके व्यवहार और निर्णयों में पारदर्शिता बनी रहे। इसके साथ ही, रिटायर होने के बाद जजों के लिए एक कूलिंग ऑफ पीरियड निर्धारित करने की बात भी उठाई गई, ताकि वे सीधे किसी सरकारी पद या राजनीतिक भूमिका में न जा सकें। समिति ने इन मुद्दों पर सरकार और न्यायपालिका से स्पष्टता और कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
घटना का संक्षिप्त विवरण
14 मार्च की रात 11:35 बजे दिल्ली के लुटियंस जोन में जज वर्मा के सरकारी आवास पर आग लग गई। दमकल और पुलिस ने आग बुझाई, लेकिन जब वे अंदर गए, तो वहां आधी जली हुई बड़ी मात्रा में ₹500 के नोट मिले। कई गवाहों ने इसे देखकर आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि उन्होंने अपने जीवन में इतनी नकदी एक साथ नहीं देखी थी। जज ने पहले इन पैसों के अपने होने से इनकार किया, लेकिन जांच में यह पुष्टि हुई कि ये पैसे उनके ही थे। इसके बाद जज का ट्रांसफर अलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया गया, जिसका इलाहाबाद बार काउंसिल ने विरोध किया। बार के अध्यक्ष ने कहा था कि वे इलाहाबाद हाई कोर्ट में भ्रष्टाचार को स्वीकार नहीं करेंगे।