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दिल्ली में क्लाउड सीडिंग: बारिश की उम्मीदें और वास्तविकता

दिल्ली में हाल ही में क्लाउड सीडिंग के प्रयास किए गए थे, लेकिन बारिश नहीं हुई। आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर मनिंद्र अग्रवाल ने बताया कि बादलों में नमी की कमी के कारण यह प्रक्रिया सफल नहीं हो पाई। हालांकि, प्रदूषण के कणों में 10% की कमी आई है। जानें इस तकनीक के प्रभाव और भविष्य की संभावनाओं के बारे में।
 

क्लाउड सीडिंग की योजना और परिणाम

आज नहीं होगी कृत्रिम बारिश

दिल्ली की वायु गुणवत्ता पिछले कुछ दिनों से अत्यंत खराब है, जिससे नागरिकों को सांस लेने में कठिनाई हो रही है। इस समस्या के समाधान के लिए, उत्तर प्रदेश सरकार और आईआईटी कानपुर ने मिलकर क्लाउड सीडिंग के माध्यम से कृत्रिम बारिश कराने की योजना बनाई थी। शुक्रवार को इस प्रक्रिया को लागू किया गया, लेकिन लोगों के घंटों इंतजार के बावजूद बारिश नहीं हुई। इससे कई सवाल उठने लगे हैं, जैसे कि बारिश क्यों नहीं हुई और क्या यह तकनीक सफल हो पाएगी?

क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें बादलों में सूक्ष्म रसायनों का उपयोग कर बारिश कराने का प्रयास किया जाता है। इसमें विमान के माध्यम से सिल्वर आयोडाइड (AgI) का प्रयोग किया जाता है। हालांकि, इसकी सफलता बादलों में मौजूद नमी पर निर्भर करती है।


बादलों में नमी की कमी

बादलों में नमी न होने से बारिश ने दिया धोखा

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर मनिंद्र अग्रवाल ने बताया कि बारिश न होने का मुख्य कारण बादलों में नमी की कमी थी। उनके अनुसार, दिल्ली के आसमान में बादल तो थे, लेकिन उनमें नमी केवल 15 प्रतिशत थी। सामान्यतः क्लाउड सीडिंग के लिए 40 से 50 प्रतिशत नमी आवश्यक होती है। नमी की कमी के कारण बारिश की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई।


प्रदूषण में कमी

प्रदूषण के कणों की मात्रा में 10% की आई कमी

प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा कि इस प्रयोग को पूरी तरह असफल मानना उचित नहीं है। यह पहली बार था जब सर्दियों में दिल्ली जैसे प्रदूषण प्रभावित क्षेत्र में क्लाउड सीडिंग की गई। इस प्रक्रिया के दौरान विभिन्न स्थानों पर प्रदूषण स्तर मापने के उपकरण लगाए गए थे, और जहां सीडिंग की गई, वहां पीएम 2.5 और पीएम 10 के कणों में लगभग 10 प्रतिशत की कमी आई।


पर्यावरण पर प्रभाव

सिल्वर आयोडाइड की कम मात्रा से प्राकृतिक संतुलन नहीं बिगड़ता

क्लाउड सीडिंग के पर्यावरण पर प्रभाव को लेकर कई सवाल उठते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि सिल्वर आयोडाइड की मात्रा इतनी कम होती है कि इसका मानव स्वास्थ्य या पर्यावरण पर कोई गंभीर प्रभाव नहीं पड़ता। प्रोफेसर अग्रवाल ने बताया कि 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में एक किलो से भी कम सिल्वर आयोडाइड का उपयोग किया जाता है।


क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया

क्या क्लाउड सीडिंग मौसम में खिलावाड़ करने जैसा है?

कुछ लोग इसे जलवायु में छेड़छाड़ मानते हैं। प्रोफेसर अग्रवाल का कहना है कि यदि इसे बड़े पैमाने पर किया जाए, तो यह मौसम परिवर्तन की श्रेणी में आ सकता है। लेकिन इस प्रयोग का उद्देश्य केवल प्रदूषण कम करना था।

संभावनाओं पर आधारित प्रक्रिया है क्लाउड सीडिंग

क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रयोग है जिसमें परिणाम की गारंटी नहीं होती। दिल्ली में बारिश नहीं हुई, लेकिन वैज्ञानिकों ने जो डेटा इकट्ठा किया है, वह भविष्य में इस तकनीक को बेहतर बनाने में मदद करेगा।