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दिल्ली की बिजली कंपनियों को 27,200 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश

उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली की तीन निजी बिजली वितरण कंपनियों को 27,200.37 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है। यह निर्णय नियामक परिसंपत्तियों की बढ़ती लागतों के संदर्भ में आया है, जो उपभोक्ताओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। न्यायालय ने कहा कि कंपनियों को चार वर्षों के भीतर अपने बकाये का भुगतान करना होगा। जानें इस फैसले के पीछे की वजह और इसके संभावित परिणाम।
 

उच्चतम न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि दिल्ली की तीन निजी बिजली वितरण कंपनियों को 27,200.37 करोड़ रुपये की वहन लागत सहित नियामक परिसंपत्तियों का भुगतान तीन साल के भीतर करना होगा।


नियामक परिसंपत्तियां वे लागतें या राजस्व होती हैं जिन्हें किसी नियामक एजेंसी, जैसे कि बिजली उपयोगिताओं के लिए, किसी कंपनी की बैलेंस शीट में स्थगित करने की अनुमति देती है, खासकर जब वास्तविक लागतें निर्धारित शुल्क से अधिक हो जाती हैं।


इस मामले में, यह राशि तेजी से बढ़ी है, जिसमें 31 मार्च, 2024 तक बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड (बीआरपीएल) के लिए 12,993.53 करोड़ रुपये, बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड (बीवाईपीएल) के लिए 8,419.14 करोड़ रुपये और टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड (टीपीडीडीएल) के लिए 5,787.70 करोड़ रुपये शामिल हैं। इस प्रकार, इन कंपनियों को कुल मिलाकर 27,200.37 करोड़ रुपये का भुगतान करना है।


यह निर्णय दिल्ली के बिजली उपभोक्ताओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला है। न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने यह फैसला तीन बिजली वितरण कंपनियों द्वारा दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) के शुल्क आदेशों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनाया, जिसके कारण विनियामक परिसंपत्तियों में भारी वृद्धि हुई।


न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने 82 पृष्ठों के निर्णय में कहा, 'किसी विशेष वर्ष के लिए शुल्क निर्धारित करते समय राजस्व आवश्यकता के इस हिस्से को शामिल नहीं किया जाता। वितरण कंपनी भविष्य में, एक निश्चित अवधि में, इस तरह के राजस्व को प्राप्त करने या वसूलने की हकदार है।' अदालत के आदेश के अनुसार, बिजली वितरण कंपनियों को चार वर्षों के भीतर उनके बकाये का भुगतान करना होगा, जिसकी गणना 2024 से की जाएगी।