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दिल्ली उच्च न्यायालय ने 10 वर्षीय बच्ची के बलात्कार मामले में दोषी की सजा को बरकरार रखा

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2017 में एक 10 वर्षीय बच्ची के बलात्कार मामले में दोषी की 12 साल की सजा को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय है और इसी आधार पर दोषी ठहराया जा सकता है। आरोपी ने बच्ची को खाद्य पदार्थों का लालच देकर दुष्कर्म किया और उसे धमकी दी। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और न्यायालय के निर्णय के पीछे के तर्क।
 

दिल्ली उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2017 में एक 10 वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार के मामले में एक व्यक्ति की 12 साल की सजा को बनाए रखते हुए कहा कि पीड़िता की गवाही पूरी तरह से विश्वसनीय है और इसी आधार पर दोषी ठहराया जा सकता है।


न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने दोषी टोनी की अपील को तीन सितंबर को खारिज करते हुए यह महत्वपूर्ण आदेश दिया।


न्यायाधीश ने स्पष्ट किया, "कानून की यह स्थापित स्थिति है कि यदि पीड़िता एकमात्र गवाह है, लेकिन उसकी गवाही विश्वसनीय और भरोसेमंद है, तो दोषसिद्धि को बनाए रखा जा सकता है। यदि बच्ची की गवाही विश्वसनीय है, तो उसी के आधार पर दोषी ठहराया जा सकता है।"


प्राथमिकी के अनुसार, आरोपी व्यक्ति बच्ची के स्कूल के निकट एक फर्नीचर की दुकान में काम करता था और उसने बच्ची को चाउमीन और कचौड़ी जैसे खाद्य पदार्थों का लालच देकर कई बार दुष्कर्म किया।


इसके अतिरिक्त, उसने बच्ची को धमकी दी थी कि यदि उसने किसी को इस घटना के बारे में बताया, तो वह उसे "नाले में डुबो देगा या लकड़ी की तरह टुकड़े-टुकड़े कर देगा।"


न्यायाधीश ने कहा कि बच्ची का बयान लगातार और विश्वसनीय रहा, और आरोपी व्यक्ति जिरह के दौरान उसकी गवाही को खारिज नहीं कर सका।