दाह संस्कार के पीछे का रहस्य: क्यों नहीं देखते पीछे?
दाह संस्कार का महत्व
दाह संस्कारImage Credit source: Unplash
दाह संस्कार: मृत्यु मानव जीवन का सबसे बड़ा सत्य है। हिंदू धर्म में 16 संस्कारों का उल्लेख किया गया है, जिसमें अंतिम संस्कार को सोलहवें संस्कार के रूप में माना जाता है। इसके बाद आत्मा अपनी नई यात्रा पर निकल जाती है। कहा जाता है कि इस संस्कार के बिना आत्मा का बंधन अपने पूर्व संबंधों से नहीं टूटता। इसलिए, अंतिम संस्कार के समय कुछ विशेष परंपराओं का पालन किया जाता है।
इन परंपराओं में से एक यह है कि शव का दाह संस्कार करने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। आइए जानते हैं कि इसके पीछे का कारण क्या है?
आत्मा का निरंतर अस्तित्व
कहा जाता है कि दाह संस्कार के बाद शरीर अग्नि में जल जाता है, लेकिन आत्मा का अस्तित्व बना रहता है। गीता में कहा गया है कि आत्मा न तो शस्त्र से कट सकती है, न आग में जल सकती है, और न ही जल में गीली हो सकती है। आत्मा मृत्यु से लेकर अंतिम संस्कार तक सभी क्रियाकलापों को देखती है।
श्मशान से निकलते समय पलटकर न देखना
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद भी आत्मा का मोह अपने परिवार से बना रहता है। इस मोह के कारण आत्मा अपने प्रियजनों के आस-पास भटकती रहती है। शव को अग्नि में जलाने का अर्थ है आत्मा को शरीर के मोह से मुक्त करना। श्मशान से निकलते समय पीछे मुड़कर न देखने का कारण यह है कि आत्मा अपनी उम्मीदें न खोए कि उसका परिवार से कोई संबंध है।
मृत्यु के बाद सभी कर्मकांड 13 दिनों तक किए जाते हैं। इस दौरान आत्मा देखती है कि उसे किस प्रकार अंतिम विदाई दी जा रही है। यदि दाह संस्कार के बाद पीछे मुड़कर देखा जाता है, तो आत्मा और अधिक मोह में फंस जाती है, जिससे उसे संसार छोड़ने में कठिनाई होती है।
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