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दशहरा पर रावण दहन की ऐतिहासिक शुरुआत: जानें कब और कैसे हुआ था

दशहरा का पर्व हर साल देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें रावण का दहन एक महत्वपूर्ण परंपरा है। जानें कि रावण का पहला दहन कब हुआ था और इसके पीछे का ऐतिहासिक महत्व क्या है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, और इसके साथ जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएँ हैं। इस लेख में हम रावण दहन की शुरुआत और विजयदशमी के महत्व पर चर्चा करेंगे।
 

रावण दहन का इतिहास

पहला रावण दहन

रावण दहन की पहली घटना: इस समय देशभर में दशहरा का उत्सव मनाया जा रहा है, जो हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष, 2 अक्टूबर 2025 को दशहरा धूमधाम से मनाया जाएगा, जिसमें रावण का पुतला जलाया जाएगा। यह परंपरा असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक मानी जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण का पहला दहन कब हुआ था? आइए जानते हैं।

रावण का पुतला जलाने का पहला अवसर

रावण दहन की पहली घटना का कोई निश्चित समय नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यह पहली बार 1948 में रांची में हुआ था, जो उस समय बिहार का हिस्सा था। यह रावण दहन पाकिस्तान से आए शरणार्थियों द्वारा किया गया था। इसके बाद, 17 अक्टूबर 1953 को दिल्ली के रामलीला मैदान में भी रावण का दहन किया गया।

विजयदशमी का महत्व

दशहरे को विजयदशमी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर अच्छाई की जीत हासिल की थी। इसी दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर का अंत किया था, जो नवरात्रि के नौ दिनों के बाद का दिन है। इसलिए, ‘विजयदशमी’ का अर्थ है ‘विजय का दसवां दिन’।”

दशहरे पर रावण दहन का उद्देश्य

दशहरे पर रावण का दहन इसलिए किया जाता है क्योंकि इस दिन भगवान राम ने अहंकारी रावण का अंत किया था। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। रावण का पुतला जलाकर लोग यह संदेश देते हैं कि चाहे अन्याय कितना भी बड़ा क्यों न हो, अंत में सत्य की ही विजय होती है। इसी कारण दशहरे पर रावण का दहन किया जाता है।