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द ताज स्टोरी: प्यार या इतिहास की बहस?

द ताज स्टोरी एक विवादास्पद फिल्म है जो ताज महल के इतिहास और उसके पीछे की कहानियों को उजागर करती है। परेश रावल के अभिनय के साथ, यह फिल्म एक टूर गाइड की यात्रा को दर्शाती है जो ताजमहल की असली सच्चाई को साबित करने के लिए कोर्ट में जाता है। क्या यह फिल्म अपने उद्देश्य में सफल होती है? जानें इस समीक्षा में कि फिल्म की कहानी, निर्देशन और अभिनय कैसे हैं, और क्या इसे देखना चाहिए या नहीं।
 

ताज महल विवाद पर आधारित फिल्म

‘ताज महल’ विवाद पर बनी फिल्म का सचImage Credit source: सोशल मीडिया


द ताज स्टोरी की समीक्षा: हम सभी ने अपने व्हाट्सऐप पर वह संदेश देखा होगा, जिसमें कहा गया है कि ताज महल वास्तव में एक प्राचीन शिव मंदिर है। इस विवाद पर आधारित फिल्म 'द ताज स्टोरी' ने इसे एक नई दिशा दी है, जिसमें परेश रावल जैसे अभिनेता शामिल हैं।


फिल्म का मुख्य पात्र, आगरा का टूर गाइड विष्णु दास, यह दावा करता है कि यह केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय मुद्दा है। यह सवाल उठता है कि क्या हमें अपने इतिहास की नींव को फिर से जांचने की आवश्यकता है।


कहानी का सारांश


फिल्म की कहानी विष्णु दास पर केंद्रित है, जो ताजमहल की प्रेम कहानी सुनाता है। लेकिन एक दिन वह तय करता है कि उसे ताजमहल की असली सच्चाई साबित करनी है। इसके लिए वह कोर्ट में जनहित याचिका दायर करता है, जिसमें वह ताजमहल को एक प्राचीन स्थल बताता है।


परेश रावल का एक संवाद है, 'जब हर बात पर डीएनए टेस्ट हो सकता है, तो ताजमहल का भी डीएनए टेस्ट कराओ!' यह फिल्म कोर्टरूम ड्रामा में बदल जाती है, जो दर्शकों को अपनी ओर खींचती है।


फिल्म की गुणवत्ता


फिल्म का पहला भाग दर्शकों को आकर्षित करता है, लेकिन दूसरे भाग में कहानी कोर्टरूम ड्रामा में बदल जाती है, जिससे इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है।


निर्देशन और लेखन


तुषार गोयल ने फिल्म का निर्देशन किया है, लेकिन कोर्टरूम बहस को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत नहीं किया गया है।


अभिनय


परेश रावल की अदाकारी शानदार है, लेकिन उनका किरदार कुछ नया नहीं लाता। अन्य कलाकारों को भी कमजोर लेखन का सामना करना पड़ा है।


देखें या न देखें


फिल्म एक महत्वपूर्ण विषय उठाती है, लेकिन कई पहलुओं में यह निराश कर सकती है। यह ऐतिहासिक सच्चाई पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अनावश्यक ड्रामा में उलझ जाती है।


165 मिनट की यह फिल्म अपने दावों में कमजोर है। हालांकि, परेश रावल की अदाकारी और फिल्म की सिनेमैटोग्राफी प्रशंसा के योग्य है।