तेलगी घोटाला: 30000 करोड़ के फर्जी स्टांप पेपर का रहस्य
तेलगी घोटाले की कहानी
2003 में एक ऐसा व्यक्ति सामने आया जिसने 30000 करोड़ रुपये के घोटाले को अंजाम दिया, जिसने देश की आर्थिक स्थिति को हिला कर रख दिया। जब भी सबसे बड़े घोटालों की चर्चा होती है, अब्दुल करीम तेलगी का नाम सबसे पहले आता है। यह घोटाला, जिसे नकली स्टांप पेपर घोटाला कहा जाता है, ने सरकारी अधिकारियों से लेकर आम जनता तक सभी को प्रभावित किया।
आइए जानते हैं इस घोटाले की पूरी कहानी।
अब्दुल करीम तेलगी का परिचय
तेलगी का जन्म 1961 में कर्नाटक के खानापुर में हुआ। उनके पिता रेलवे में कार्यरत थे, लेकिन जल्दी ही उनका निधन हो गया। पिता की मृत्यु के बाद, तेलगी को जीवन यापन के लिए छोटे-मोटे काम करने पड़े। आर्थिक तंगी के कारण, उन्होंने सऊदी अरब जाकर काम करने का निर्णय लिया। वहां उन्होंने नकली दस्तावेज और स्टांप पेपर बनाने का काम शुरू किया।
1993 में, जालसाजी के आरोप में उन्हें जेल भेजा गया, जहां उनकी मुलाकात राम रतन सोनी से हुई, जो एक सरकारी स्टांप विक्रेता थे। दोनों ने जेल में मिलकर एक बड़े घोटाले की योजना बनाई।
फर्जी स्टांप पेपर का कारोबार
जेल से बाहर आने के बाद, तेलगी ने नकली पासपोर्ट बनाने के साथ-साथ स्टांप पेपर बनाने का काम शुरू किया। 1994 में, उन्होंने सोनी के साथ मिलकर स्टांप वेंडर का लाइसेंस प्राप्त किया और कई जाली स्टांप पेपर तैयार किए। भारत में कानूनी दस्तावेजों के लिए स्टांप पेपर का उपयोग अनिवार्य है, और सरकार इन्हें पंजीकृत विक्रेताओं के माध्यम से बेचती है।
1992 में हर्षद मेहता स्कैम के कारण स्टांप पेपर की कमी हो गई थी, जिससे तेलगी को फर्जी स्टांप बेचने का अवसर मिला। 1996 में, उन्होंने अपनी प्रेस खोली और देश के 70 शहरों में नकली स्टांप पेपर बेचना शुरू किया।
घोटाले का खुलासा
2000 में, बेंगलुरु से दो व्यक्तियों को फर्जी स्टांप पेपर के साथ गिरफ्तार किया गया, जिससे तेलगी का नाम सामने आया। 2001 में, उन्हें अजमेर से गिरफ्तार किया गया। महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया। जांच में कई सरकारी अधिकारियों के नाम भी सामने आए।
SIT ने 2003 में 54 लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें विधायक अनिल गोटे और आरएस शर्मा शामिल थे। 2004 में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने मामले की जांच अपने हाथ में ली।
सजा और मौत
2007 में, तेलगी को 30 साल की कैद और 202 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया। यह सजा महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम के तहत थी। 2017 में, गंभीर बीमारियों के कारण उनकी मृत्यु हो गई।