तुर्की में एर्दोआन की तख्तापलट के डर से कार्रवाई, 182 अधिकारी गिरफ्तार
तुर्की में तख्तापलट का डर
नीदरलैंड के हेग में NATO समिट के दौरान, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोआन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ तस्वीरें खिंचवाते और मुस्कुराते नजर आए। लेकिन तुर्की के अंदर की स्थिति को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि उन्हें तख्तापलट का डर सताने लगा है। विदेश में दोस्ती के बावजूद, देश के भीतर एक भय का माहौल है।
सुरक्षा बलों की कार्रवाई
इसी डर के चलते, एर्दोआन ने सेना और पुलिस में एक बार फिर से बड़ी कार्रवाई की है। गुलेन आंदोलन से जुड़े 182 अधिकारियों को हिरासत में लिया गया है, जिनमें अधिकांश तुर्की सेना के सीनियर अधिकारी और कुछ पुलिसकर्मी शामिल हैं।
छापेमारी और गिरफ्तारी
इस्तांबुल और इज़मिर सहित 43 प्रांतों में एक साथ छापेमारी की गई, जिसमें 176 संदिग्धों के खिलाफ वॉरंट जारी किए गए थे। अब तक 163 संदिग्धों को गिरफ्तार किया जा चुका है। गिरफ्तार किए गए अधिकारियों में कर्नल, लेफ्टिनेंट कर्नल, मेजर और कैप्टन रैंक के अधिकारी शामिल हैं। एक अलग ऑपरेशन में 21 लोगों को पकड़ा गया, जिनमें 13 मौजूदा और 6 पूर्व पुलिस अधिकारी हैं। तुर्की सरकार का दावा है कि ये सभी गुलेन आंदोलन के गुप्त नेटवर्क से जुड़े थे।
गुलेन आंदोलन का इतिहास
गुलेन आंदोलन, जिसे पहले शिक्षा और सामाजिक कल्याण में योगदान के लिए सराहा जाता था, अब तुर्की सरकार की नजर में एक आतंकवादी संगठन बन चुका है। 2016 में हुई विफल तख्तापलट के बाद से, एर्दोआन ने इस आंदोलन के खिलाफ एक खुला युद्ध छेड़ दिया है। हालांकि, अमेरिका और यूरोपीय संघ इसे आतंकवादी संगठन नहीं मानते।
सत्ता पर पकड़ बनाए रखने की कोशिश
2016 के बाद से, लगभग 7 लाख लोगों की जांच की जा चुकी है और 13,000 से अधिक लोग जेल में हैं। 24,000 से ज्यादा सैन्यकर्मियों को सेना से बाहर किया जा चुका है। आलोचकों का कहना है कि एर्दोआन इस आंदोलन के नाम पर अपने विरोधियों की आवाज़ को दबा रहे हैं और सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। गुलेन की 2024 में मौत के बाद भी एर्दोआन की मुहिम धीमी नहीं हुई है, बल्कि इसे और तेज किया जा रहा है।