तहज्जुद की नमाज: इस्लाम में इसके महत्व और लाभ
तहज्जुद की नमाज
तहज्जुद की नमाज
तहज्जुद की नमाज: नमाज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है और हर मुसलमान के लिए इसका विशेष महत्व है। एक सच्चे मुसलमान के लिए दिन में पांच बार नमाज अदा करना अनिवार्य है। नमाज अल्लाह की याद करने और उसकी कृपा के लिए आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। इसके अलावा, कुछ मुसलमान एक विशेष नमाज अदा करते हैं, जिसे तहज्जुद कहा जाता है। इसे क़ियाम-उल-लैल, नमाज-ए-शब और सलातुल लैल के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं कि इस्लाम में तहज्जुद की नमाज का क्या महत्व है।
तहज्जुद की नमाज का महत्व
इस्लाम में तहज्जुद की नमाज को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे अल्लाह के करीब लाने वाली सबसे श्रेष्ठ नमाजों में से एक माना जाता है। कुरान और हदीस में इसके महत्व का उल्लेख किया गया है। तहज्जुद की नमाज रात के अंतिम तिहाई हिस्से में अदा की जाती है, जब अल्लाह सबसे निचले आसमान पर आते हैं और दुआओं को सुनते हैं।
इस्लामिक मान्यता के अनुसार, जब पूरी दुनिया सो रही होती है, तब अल्लाह तआला रात के अंतिम तिहाई में अपने बंदों से तीन बार पुकारते हैं-
- क्या कोई है जो मुझसे दुआ मांगे और मैं उसकी दुआ स्वीकार करूं?
- क्या कोई है जो मुझसे सवाल करे और मैं उसे उत्तर दूं?
- क्या कोई है जो अपने गुनाहों की माफी मांगे और मैं उसे माफ कर दूं?
कुरान में तहज्जुद का उल्लेख
इस्लाम की पवित्र किताब कुरान में तहज्जुद की नमाज का उल्लेख किया गया है। कुरान के 29वें पारे (जुज़) की सूरह मुज़्ज़म्मिल में तहज्जुद का उल्लेख है, जो कुरान की 73वीं सूरह है। इस सूरह में 20 आयतें हैं, जिनमें 1 से 8 आयत तक तहज्जुद की नमाज के बारे में बताया गया है।
अल्लाह तआला अपने पैगंबर को रात में इबादत करने का आदेश देते हैं और उन्हें धैर्य रखने और अल्लाह की ओर ध्यान केंद्रित करने का तरीका बताते हैं। सूरह मुज़्ज़म्मिल में कहा गया है, “हे चादर ओढ़ने वाले, रात में कुछ हिस्से को छोड़कर नमाज पढ़ो, यानी आधी रात या उससे कुछ कम या आधी से कुछ ज्यादा। और ठहर ठहर कर कुरान पढ़ो। जल्द ही हम आप पर एक भारी आदेश उतारेंगे। यकीनन रात का समय उठना ऐसा कार्य है जिससे नफ्स को अच्छी तरह काबू किया जा सकता है।”
तहज्जुद की नमाज के लाभ
तहज्जुद की नमाज के कई लाभ हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- यह नमाज दिल को सुकून देती है और रूहानियत को बढ़ाती है।
- इससे जन्नत के सभी सुख प्राप्त होते हैं।
- जो लोग रात में उठकर इबादत करते हैं, उनके लिए जन्नत में विशेष महल होते हैं।
- यह दुआओं के स्वीकार होने का एक प्रभावी माध्यम है।
- इससे अल्लाह से जुड़ने का विशेष अवसर मिलता है।
- इससे अल्लाह की कृपा और रहम बना रहता है।
- यह रूहानियत को ऊंचा करती है और दिल को ईमान की रोशनी से भर देती है।
- लगातार पढ़ने से चेहरा नूरानी होता है और इच्छाएं पूरी होती हैं।
- इस नमाज को पढ़ने वाले के साथ अल्लाह के फरिश्ते और नेक जिन्नात भी नमाज पढ़ते हैं।
- यह कठिनाइयों को दूर करती है और धैर्य प्रदान करती है।
तहज्जुद की नमाज का सही समय
तहज्जुद की नमाज का सही समय ईशा की नमाज के बाद और फज्र की नमाज से ठीक पहले होता है। इसे रात के किसी भी समय पढ़ा जा सकता है, लेकिन इसका सबसे अधिक लाभ रात के अंतिम हिस्से में होता है, जिसे ‘सहरी’ का समय भी कहा जाता है। इस नमाज को पढ़ने के लिए सोने के बाद उठना आवश्यक है, चाहे आप थोड़ी देर के लिए ही क्यों न सोएं।
तहज्जुद की नमाज में कितनी रकात होती है?
तहज्जुद की नमाज में कम से कम 2 रकात होती हैं और अधिकतम 8 या 12 रकात तक पढ़ी जा सकती है। इसे दो-दो रकात के जोड़ में पढ़ा जाता है और इसमें कोई निश्चित संख्या नहीं है, बल्कि आप इसे अपनी सुविधा के अनुसार 2, 4, 6, 8 या 12 रकात तक पढ़ सकते हैं।
तहज्जुद की नमाज सुन्नत है या नफ्ल?
इस्लाम में तहज्जुद की नमाज को सुन्नत या नफ्ल समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि सुन्नत और नफ्ल क्या होते हैं। इस्लाम में नमाज की कुछ श्रेणियाँ हैं – फर्ज, सुन्नत और नफ्ल।
- फर्ज नमाज वह होती है जो अत्यंत आवश्यक होती है, जिसे किसी भी स्थिति में नहीं छोड़ा जा सकता।
- नफ्ल नमाज वह होती है जो अनिवार्य नहीं होती और इसे पढ़ने वाले की इच्छा पर निर्भर करती है।
- सुन्नत नमाज वह होती है जो पैगंबर मुहम्मद साहब नियमित रूप से पढ़ते थे और दूसरों को भी इसे पढ़ने की सलाह देते थे।
इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो तहज्जुद नफ्ल नमाज है। लेकिन हर नफ्ल पर पैगंबर मुहम्मद साहब ने पाबंदी नहीं लगाई है। जिन नफ्ल नमाजों पर उन्होंने ध्यान दिया या जो उन्होंने पढ़ी, उन्हें सुन्नत कहा जाता है। पैगंबर मुहम्मद ने तहज्जुद की नमाज को नियमित रूप से पढ़ा, इसलिए इसे सुन्नत माना जाता है। यह केवल एक सामान्य नफ्ल की तरह नहीं है और इसकी विशेषता भी है, क्योंकि यह नमाज पढ़ना पैगंबर मुहम्मद साहब की आदत थी।