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डॉ. मोहन भागवत का एकात्म मानव दर्शन पर विचार

डॉ. मोहन भागवत ने जयपुर में आयोजित दीनदयाल स्मृति व्याख्यान में एकात्म मानव दर्शन के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि यह विचार आज भी विश्व के लिए प्रासंगिक है। भागवत ने भारतीय संस्कृति की विशेषताओं और वैश्विक आर्थिक चुनौतियों पर भी चर्चा की। जानें उनके विचारों के बारे में और कैसे यह दर्शन मानवता के लिए मार्गदर्शक हो सकता है।
 

डॉ. मोहन भागवत का उद्बोधन पं. दीनदयाल स्मृति व्याख्यान में


पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने सनातन विचार को एकात्मक मानव दर्शन के रूप में प्रस्तुत किया, जो समय और परिस्थिति के अनुसार प्रासंगिक है। यह विचार आज भी विश्व के लिए महत्वपूर्ण है।


यह जानकारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को जयपुर में आयोजित दीनदयाल स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम में साझा की।


डॉ. भागवत ने कहा कि यदि एकात्मक मानव दर्शन को संक्षेप में समझना हो तो वह धर्म है, जिसका अर्थ केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि सभी को समेटने वाला एक व्यापक दृष्टिकोण है। वर्तमान में दुनिया को इसी आधार पर आगे बढ़ना चाहिए।


उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति ने हमेशा दूसरों को सुख देने का प्रयास किया है। भले ही भारत में जीवनशैली में बदलाव आया हो, लेकिन सनातन विचार स्थिर है। यह विचार हमें सिखाता है कि वास्तविक सुख हमारे भीतर है।


डॉ. भागवत ने शरीर, मन और बुद्धि की सत्ता के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि सभी का हित साधते हुए विकास की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ाव का भारत पर कम प्रभाव पड़ता है, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था परिवार पर आधारित है।


विज्ञान की प्रगति के बावजूद, क्या मानवता में शांति और संतोष बढ़ा है? उन्होंने सवाल उठाया कि क्या नई दवाइयों के बावजूद स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।


कार्यक्रम की प्रस्तावना डॉ. महेश शर्मा ने रखी, जिन्होंने कहा कि संपूर्ण सृष्टि एकात्म है और इसका हर कण एक-दूसरे से जुड़ा है। उन्होंने वंदे मातरम की रचना के 150वें वर्ष का भी उल्लेख किया।


इस कार्यक्रम में राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।