डॉ. आंबेडकर को श्रद्धांजलि: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ऐतिहासिक मार्च
डॉ. आंबेडकर को श्रद्धांजलि देने का ऐतिहासिक अवसर
27 जनवरी 1991 को मुंबई में 10,000 से अधिक स्वयंसेवकों ने अपने पूर्ण गणवेश में पथ-संचलन के माध्यम से डॉ. भीमराव आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। वर्ली में स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद, यह मार्च जंबूरी मैदान तक पहुंचा, जहां स्वयंसेवकों को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया।
इस अवसर पर संघ के प्रांत प्रचारक भीकू रामजी इदाते ने कहा कि जाति, पंथ और भाषा से परे होना आवश्यक है, ताकि हम राष्ट्रीय एकता को साकार कर सकें।
उन्होंने यह भी कहा कि डॉ. आंबेडकर का सपना तभी पूरा होगा जब हम राजनीतिक लोकतंत्र के साथ-साथ सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना के लिए प्रयासरत रहें। सामाजिक लोकतंत्र का अर्थ है समाज में समरसता, जहां भेदभाव न हो।
संघ के संस्थापक का दृष्टिकोण
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए निरंतर प्रयास किए। 1939 में पुणे में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग में डॉ. आंबेडकर भी उपस्थित थे।
हेडगेवार ने स्वयंसेवकों से पूछा कि उनमें से कितने अस्पृश्य हैं, और जब डॉ. आंबेडकर ने पूछा, तो कोई भी आगे नहीं आया। इस पर उन्होंने कहा कि संघ में किसी को भी अस्पृश्य होने का अनुभव नहीं कराया जाता।
डॉ. आंबेडकर का संघ के प्रति दृष्टिकोण
डॉ. आंबेडकर ने संघ के कार्यों की सराहना की और उनके विचारों को मान्यता दी। 1991 में उनकी जन्म-शताब्दी पर संघ ने कई कार्यक्रम आयोजित किए।
डॉ. आंबेडकर ने 1935 में संघ शिविर का अवलोकन किया और 1937 में विजयादशमी उत्सव में भी भाग लिया।
हालांकि, डॉ. हेडगेवार के निधन के बाद उनका संघ से संपर्क कम हो गया।
आंबेडकर का चुनावी प्रयास
1954 में भंडारा लोकसभा उपचुनाव में डॉ. आंबेडकर ने चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। उनके शुभचिंतकों की बैठक में दत्तोपंत ठेंगड़ी भी शामिल थे।
हालांकि, डॉ. आंबेडकर इस चुनाव में हार गए, लेकिन उनके समर्थकों ने प्रचार में मदद की।