टाइप 1 डायबिटीज: लक्षण, कारण और उपचार के उपाय
टाइप 1 डायबिटीज की समझ
टाइप 1 डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर इंसुलिन का उत्पादन लगभग पूरी तरह से बंद कर देता है। इंसुलिन की कमी के कारण ग्लूकोज कोशिकाओं में नहीं जा पाता और रक्त में जमा होने लगता है। यह बीमारी आमतौर पर बच्चों और किशोरों में देखी जाती है और इसे एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर माना जाता है, जिसमें शरीर अपनी ही पैंक्रियास की बीटा कोशिकाओं पर हमला करता है। समय के साथ, इंसुलिन का स्तर घटता है और अंततः यह लगभग शून्य हो जाता है। कभी-कभी शुरुआत में थोड़ी मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन होता है।
टाइप 1 डायबिटीज के कारण
स्वास्थ्य के सामान्य हालात में, इम्यून सिस्टम वायरस और बैक्टीरिया से सुरक्षा करता है, लेकिन टाइप 1 डायबिटीज में यह गलती से बीटा कोशिकाओं को हानिकारक समझ लेता है। इसे ऑटोइम्यून अटैक कहा जाता है, जिसमें इम्यून सेल्स धीरे-धीरे बीटा कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं। जेनेटिक प्रवृत्ति इस बीमारी का एक प्रमुख कारण है। यदि परिवार में किसी को टाइप 1 डायबिटीज है, तो अन्य सदस्यों में इसका खतरा बढ़ जाता है। कुछ वायरल संक्रमण और बचपन के वायरस भी इम्यून सिस्टम को भ्रमित कर सकते हैं।
लक्षण और पहचान
टाइप 1 डायबिटीज के प्रारंभिक लक्षणों में अत्यधिक प्यास, बार-बार पेशाब आना, तेजी से वजन कम होना, भूख में वृद्धि, त्वचा का सूखापन, थकान, मूड में बदलाव, घावों का धीरे भरना और धुंधली दृष्टि शामिल हैं। बच्चों में उल्टी और पेट दर्द भी हो सकते हैं। पहचान के लिए फास्टिंग ब्लड शुगर, पीपीबीएस, एचबीए1सी और सी-पेप्टाइड टेस्ट किया जाता है। ऑटोएंटीबॉडी टेस्ट (जीएडी, आईए2, जेडएनटी8) टाइप 1 की पुष्टि करते हैं।
उपचार और घरेलू उपाय
आयुर्वेद में इसे युवावस्थाजन्य मधुमेह और धातु-क्षयजन्य माना जाता है। ओज की कमी, अग्नि की कमजोरी और प्रतिरक्षा असंतुलन इसे जन्म देते हैं। घरेलू उपायों में नियमित और हल्का भोजन, गुनगुना पानी, ठंडी चीजों और पैकेज्ड फूड का कम सेवन, हल्का योग और स्ट्रेचिंग शामिल हैं। पर्याप्त नींद भी आवश्यक है। आयुर्वेदिक सपोर्ट के लिए वासावलेह, अमलकी चूर्ण, गुड्डुची सत्व और शतावरी घृत जैसी औषधियां वैद्य की सलाह पर ली जा सकती हैं। ध्यान रखें कि मुख्य उपचार इंसुलिन ही है, जबकि घरेलू उपाय सहायक होते हैं।