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झारखंड में डीजीपी विवाद: हेमंत सोरेन और केंद्र के बीच टकराव

झारखंड में डीजीपी अनुराग गुप्ता की नियुक्ति को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और केंद्र सरकार के बीच विवाद गहरा गया है। केंद्र ने गुप्ता का वेतन रोक दिया है, जबकि सोरेन उन्हें हटाने के लिए तैयार नहीं हैं। यह मामला अब न्यायालय तक पहुंच चुका है, जिससे राजनीतिक संघर्ष और भी बढ़ गया है। जानें इस विवाद की पूरी कहानी और इसके संभावित परिणाम।
 

डीजीपी की वेतन रोकने का मामला

भारत के एक राज्य में, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) बिना वेतन के अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने उनकी तनख्वाह रोक दी है, फिर भी अधिकारी राज्य सरकार के प्रति अपनी निष्ठा दिखाने में लगे हुए हैं। यह मामला झारखंड का है, जहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार के साथ डीजीपी को लेकर विवाद खड़ा कर दिया है। 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी अनुराग गुप्ता को डीजीपी नियुक्त कर सोरेन ने केंद्र को सीधी चुनौती दी है।



केंद्र का कहना है कि गुप्ता 30 अप्रैल 2025 को रिटायर हो चुके हैं, ऐसे में वह डीजीपी पद पर कैसे बने रह सकते हैं? दूसरी ओर, हेमंत सोरेन गुप्ता को हटाने के लिए तैयार नहीं हैं। यह राजनीतिक संघर्ष अब न्यायालय तक पहुंच चुका है।


रिटायरमेंट के बाद भी पद पर बने रहना

अनुराग गुप्ता झारखंड कैडर के 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। जुलाई 2024 में उन्हें कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया था, लेकिन चुनाव आयोग ने उन्हें हटा दिया। नवंबर 2024 में सोरेन की वापसी के बाद गुप्ता फिर से डीजीपी बने। हालाँकि, 30 अप्रैल 2025 को उनकी उम्र 60 वर्ष हो गई, और केंद्र ने कहा कि इस उम्र में आईपीएस अधिकारी रिटायर हो जाते हैं। लेकिन सोरेन ने गुप्ता को हटाने से इनकार कर दिया।


केंद्र ने 22 अप्रैल को झारखंड सरकार को पत्र लिखकर गुप्ता को हटाने का निर्देश दिया, लेकिन राज्य सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।


केंद्र द्वारा वेतन रोकना

हेमंत सोरेन की सरकार ने 8 जनवरी 2025 को एक नया नियम बनाया, जिसमें डीजीपी की नियुक्ति के लिए यूपीएससी की सलाह को छोड़कर एक राज्य समिति का गठन किया गया। केंद्र ने इसे सुप्रीम कोर्ट के 2006 के फैसले का उल्लंघन बताया, जिसमें कहा गया था कि डीजीपी की नियुक्ति यूपीएससी के तीन अधिकारियों के पैनल से होनी चाहिए। हेमंत सरकार का दावा है कि उनका नियम सुप्रीम कोर्ट के अनुसार है।


हालांकि, झारखंड के लेखा विभाग ने गुप्ता का वेतन रोक दिया है, क्योंकि उनके रिकॉर्ड में रिटायरमेंट दर्ज है। फिर भी, गुप्ता बिना वेतन के डीजीपी बने हुए हैं।


हेमंत सोरेन का तर्क

हेमंत सोरेन का कहना है कि गुप्ता को बनाए रखना पुलिस में स्थिरता के लिए आवश्यक है, खासकर चुनाव के बाद। लेकिन बीजेपी का आरोप है कि गुप्ता को विशेष कार्यों के लिए संरक्षण दिया जा रहा है। गुप्ता के खिलाफ पुराने भ्रष्टाचार के मामले भी चर्चा में हैं।


सुप्रीम कोर्ट में 6 मई को सुनवाई हुई थी और हाई कोर्ट में 16 जून 2025 को होगी। यदि कोर्ट केंद्र के पक्ष में फैसला सुनाता है, तो हेमंत के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।


गुप्ता का सेवा विस्तार

कानूनी रूप से, गुप्ता को सेवा विस्तार देना आसान नहीं है। आईपीएस अधिकारियों का विस्तार केंद्र की मंजूरी के बिना नहीं हो सकता, और केंद्र ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी यूपीएससी पैनल को अनिवार्य मानता है, जिसे हेमंत सरकार ने नजरअंदाज किया है।


ऐतिहासिक संदर्भ

बिहार में लालू यादव और राबड़ी देवी के शासन (1990-2005) में भी डीजीपी नियुक्तियों को लेकर विवाद रहे हैं। उस समय पुलिस पर राजनीतिक दबाव की बातें आम थीं। झारखंड में गुप्ता का मामला भी इसी तरह का है, जहां बीजेपी का आरोप है कि हेमंत अपने वफादार को बचा रहे हैं।


राजनीतिक संघर्ष का असली रंग

यह विवाद केवल डीजीपी की कुर्सी का नहीं है, बल्कि केंद्र और राज्य के बीच शक्ति संघर्ष का प्रतीक है। हेमंत सोरेन पुलिस पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं, जबकि बीजेपी इसे अवसर मानकर जेएमएम सरकार को घेर रही है। यदि हेमंत का दांव सफल होता है, तो यह एक मिसाल बनेगा।