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जेएनयू ने कुलपति का पदनाम बदलकर कुलगुरु किया

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने अपने सभी डिग्री प्रमाणपत्रों में 'कुलपति' शब्द को 'कुलगुरु' से बदलने का निर्णय लिया है। यह कदम लिंग-तटस्थता को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है और राजस्थान तथा मध्य प्रदेश सरकारों द्वारा पहले से लागू किए गए समान परिवर्तनों के अनुरूप है। जेएनयूएसयू के अध्यक्ष ने विश्वविद्यालय में लिंग-तटस्थ शौचालय और छात्रावासों की आवश्यकता पर भी जोर दिया है।
 

जेएनयू में कुलपति का नया पदनाम

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने अपने सभी डिग्री प्रमाणपत्रों और शैक्षणिक अभिलेखों में 'कुलपति' शब्द को 'कुलगुरु' से बदलने का निर्णय लिया है। यह महत्वपूर्ण निर्णय विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की बैठक में अप्रैल में लिया गया। बैठक के एजेंडे में यह उल्लेख किया गया कि डिग्री प्रमाणपत्रों और अन्य शैक्षणिक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर के लिए कुलपति का पदनाम बदलने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। परीक्षा नियंत्रक के निर्देश पर इस पर कार्रवाई की जाएगी।


इस परिवर्तन का मुख्य उद्देश्य कुलपति के पद को अधिक लिंग-तटस्थ बनाना है। यह जानकारी कार्य परिषद की बैठक में साझा की गई। यह कदम राजस्थान और मध्य प्रदेश सरकारों द्वारा पहले से लागू किए गए समान परिवर्तनों के अनुरूप है। राजस्थान ने फरवरी 2025 में कुलपति और उपकुलपति के स्थान पर कुलगुरु और प्रतिकुलगुरु को अपनाने के लिए एक संशोधन पारित किया, जिसे मार्च में मंजूरी दी गई। मध्य प्रदेश ने जुलाई 2024 में इसी दिशा में कदम बढ़ाया। जेएनयूएसयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने सुझाव दिया कि विश्वविद्यालय को शौचालय और छात्रावासों को भी लिंग-तटस्थ बनाने पर विचार करना चाहिए। 


कुलपति का पदनाम बदलने के साथ-साथ लिंग-तटस्थ शौचालय और छात्रावासों की मांग भी उठाई गई है। इसके अतिरिक्त, पीएचडी प्रवेश के लिए जेएनयूईई को फिर से शुरू किया जाना चाहिए और वंचितता अंक को वापस लाना चाहिए। वामपंथी नेता ने एक पोस्ट में कहा कि हमें प्रतीकात्मक इशारों से आगे बढ़कर ठोस लिंग न्याय की दिशा में काम करना चाहिए।