×

जयपुर स्थापना दिवस: गुलाबी नगर की ऐतिहासिक यात्रा

जयपुर का स्थापना दिवस हर साल 18 नवंबर को मनाया जाता है। इस ऐतिहासिक शहर की नींव महाराजा जयसिंह द्वितीय ने 1727 में रखी थी। जयपुर, जिसे गुलाबी नगर के नाम से जाना जाता है, वास्तुकला, संस्कृति और धार्मिक महत्व का एक अद्भुत उदाहरण है। यहां के प्रमुख स्थल जैसे हवामहल, जंतर-मंतर और गोविंद देव जी का मंदिर इसे और भी खास बनाते हैं। जयपुर की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और आधुनिकता का संगम इसे एक स्मार्ट और वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाता है।
 

जयपुर का स्थापना दिवस

आज राजस्थान की राजधानी जयपुर का स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। इस शहर का नाम इसके संस्थापक महाराजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर रखा गया है। लगभग तीन शताब्दियों पहले, 18 नवंबर 1727 को, उन्होंने प्रसिद्ध वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य के साथ मिलकर इस खूबसूरत गुलाबी नगर की नींव रखी थी।


वास्तु और नगर नियोजन

जयसिंह ने वास्तु शिल्प, ज्योतिष, धर्म, ड्रेनेज और नगर नियोजन के सिद्धांतों के आधार पर इस शहर का निर्माण किया। उनकी योजनाएं आज भी प्रभावी हैं और शहर की जीवंतता को दर्शाती हैं। पिछले 298 वर्षों में, जयपुर ने जंतर-मंतर, हवामहल और रामनिवास बाग जैसे कई महत्वपूर्ण निर्माण देखे हैं।


सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिवर्तन

स्थापना के पहले 100 वर्षों में, जयपुर ने कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक बदलाव देखे। इस दौरान, शहर ने भव्य महलों और किलों के साथ-साथ विज्ञान, कला और वास्तुकला में भी अपनी पहचान बनाई।


आधुनिकता की ओर कदम

अब तक, जयपुर ने कई विकासात्मक बदलाव देखे हैं। यह शहर अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखते हुए आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है और अब इसे एक स्मार्ट और वैश्विक स्तर पर पहचाना जाने वाला शहर माना जाता है।


धार्मिक महत्व

जयपुर को 'छोटी काशी' भी कहा जाता है, क्योंकि यहां कई मंदिर और पवित्र तीर्थ स्थल हैं। गोविंद देव जी का मंदिर इस शहर का सबसे प्रमुख धार्मिक स्थल है, जहां भक्तों की भारी भीड़ हर दिन दर्शन के लिए आती है।


पर्यटकों की बढ़ती संख्या

जयपुर में आने वाले पर्यटकों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। यह विश्व धरोहर शहर पहले सुनियोजित शहरों में से एक है, जिसकी बसावट की योजना पहले से बनाई गई थी।


ऐतिहासिक दरवाजे

जयपुर में कुल 29 ऐतिहासिक दरवाजे हैं, जिनमें से 13 सिटी पैलेस में और 16 परकोटे में स्थित हैं। गंगापोल गेट पर 1727 में जयपुर की नींव रखी गई थी।


जयपुर के प्रमुख दरवाजे

गंगापोल: बास बदनपुरा में स्थित है
त्रिपोलिया गेट: मूल नाम नृसिंह पोल
अजमेरी गेट: मूल नाम कृष्ण पोल
जोरावरसिंह गेट: मूल नाम ध्रुव पोल
सांगानेरी गेट: मूल नाम शिव पोल
ब्रह्मपुरी गेट: मूल नाम ब्रह्म पोल
चांदपोल गेट: मूल नाम चन्द्र पोल
सूरजपोल गेट: मूल नाम सूर्य पोल
सिरहड्योढ़ी गेट: मूल नाम अयोध्या पोल


दुनिया का पहला कल्कि मंदिर

कहा जाता है कि दुनिया का पहला कल्कि मंदिर जयपुर में स्थित है, जिसे सवाई जयसिंह ने 1732 से 1742 के बीच बनवाया था।


जयपुर का हवामहल

हवामहल, जो 1799 में सवाई प्रतापसिंह द्वारा बनवाया गया, जयपुर की स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है। इसकी संरचना भगवान श्रीकृष्ण के मुकुट के आकार की है।


नाहरगढ़ किला

नाहरगढ़ किला 700 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जिसे सवाई जयसिंह ने 1734 में बनवाया। किले के भीतर कुल 10 भवन हैं, जो विभिन्न नामों से जाने जाते हैं।


ज्योतिष और संस्कृति का केंद्र

जयपुर को ज्योतिष और संस्कृति की नगरी के रूप में जाना जाता है। यहां जंतर-मंतर, जो 1728 में स्थापित हुआ, आकाशीय घटनाओं की गणना में सहायक है।


हाथ से बना सोने का सिक्का

सवाई मानसिंह द्वितीय के शासनकाल में 1949 में हाथ से बना सोने का आखिरी सिक्का जारी हुआ था, जिसका मूल्य 28 रुपए था।