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जयपुर में ध्वनि प्रदूषण: ट्रैफिक हॉर्न से सुनने की क्षमता पर खतरा

जयपुर, जो अब देश के चौथे सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण वाले शहरों में शामिल हो गया है, में ट्रैफिक हॉर्न के कारण सुनने की क्षमता पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि शहर में ध्वनि प्रदूषण का स्तर दिल्ली से भी अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार, ट्रैफिक शोर का स्तर दिन में 53 डेसीबल और रात में 45 डेसीबल से कम होना चाहिए, लेकिन जयपुर के कुछ क्षेत्रों में यह 80 डेसीबल तक पहुंच जाता है। जानें इस समस्या के स्वास्थ्य पर प्रभाव और इससे बचने के उपाय।
 

ध्वनि प्रदूषण का बढ़ता खतरा

शहरों में जनसंख्या वृद्धि और ट्रैफिक की भीड़ ने लोगों की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। जयपुर, जो कि राजस्थान की राजधानी है, अब देश के सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण वाले शहरों में चौथे स्थान पर पहुंच गया है। सवाई मानसिंह अस्पताल के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. मोहनीश ग्रोवर के अनुसार, ट्रैफिक में बजने वाले हॉर्न शहरवासियों की सुनने की क्षमता को धीरे-धीरे कम कर रहे हैं। एसएमएस अस्पताल में ऐसे मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, जिनकी सुनने की क्षमता ट्रैफिक शोर के कारण प्रभावित हो रही है। डॉ. ग्रोवर ने बताया कि जयपुर में ध्वनि प्रदूषण का स्तर दिल्ली से भी अधिक है।


तय मानकों से अधिक शोर

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दिन में ट्रैफिक शोर का स्तर 53 डेसीबल और रात में 45 डेसीबल से कम होना चाहिए। लेकिन जयपुर के व्यस्त क्षेत्रों में शोर का स्तर 80 डेसीबल तक पहुंच जाता है, जो कानों की आंतरिक झिल्ली को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है।


लगातार शोर से स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • कानों में लगातार सिटी या गूंज की आवाज़ रहना
  • दिल से संबंधित बीमारियों का बढ़ता खतरा
  • मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप और मधुमेह का बढ़ना
  • सुनने की क्षमता में स्थायी कमी


ध्वनि प्रदूषण से बचने के उपाय

डॉ. ग्रोवर के अनुसार, कुछ सावधानियों से इस खतरे से बचा जा सकता है। इसके लिए अनावश्यक हॉर्न बजाने से बचें, बाइक चलाते समय कानों को ढकें, कार में खिड़कियाँ बंद रखें, कानों में रूई लगाकर रखें और सुनने की क्षमता में कमी महसूस होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।


बढ़ते मरीजों की संख्या

डॉ. ग्रोवर ने बताया कि एसएमएस अस्पताल के ईएनटी विभाग में प्रतिदिन 8 से 10 प्रतिशत ऐसे मरीज आ रहे हैं, जिनकी सुनने की क्षमता ध्वनि प्रदूषण के कारण कम हो रही है। लगातार तेज आवाज में रहने से कान की नसों को नुकसान होता है, जो ठीक नहीं हो पाता।