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जयपुर के विकास पर सवाल: क्या जेडीए की योजनाएं शहर को नुकसान पहुंचाएंगी?

जयपुर में जेडीए द्वारा प्रस्तावित विकास योजनाएं शहर की संरचना को कमजोर करने और बिल्डर लॉबी को लाभ पहुंचाने का खतरा पैदा कर रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बेतहाशा विस्तार से यातायात जाम, जल संकट और अन्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। क्या ये योजनाएं वास्तव में शहर के विकास में सहायक होंगी या केवल कुछ विशेष लोगों को फायदा पहुंचाएंगी? जानें इस लेख में।
 

जयपुर के विकास की नई योजनाएं

जयपुर। जेडीए द्वारा घोषित विकास योजनाएं वास्तव में बिल्डर लॉबी को लाभ पहुंचाने और शहर की संरचना को कमजोर करने का खतरा पैदा कर रही हैं। इस पहल का उद्देश्य शहर को ऊंचा उठाने के बजाय केवल बिल्डरों को फायदा पहुंचाना प्रतीत होता है।


बेतहाशा विस्तार का खतरा

जेडीए ने दीर्घकालिक दृष्टिकोण को नजरअंदाज करते हुए शहर का बेतहाशा विस्तार करने का निर्णय लिया है। इससे भविष्य में यातायात जाम, जल संकट और अन्य समस्याएं उत्पन्न होने की संभावना है। दूरदराज के गांवों में सुविधाएं पहुंचाना कठिन होगा, जिससे लोगों को यात्रा में अधिक समय लगेगा।


जयपुर का लैंड बैंक

जयपुर के जेडीए के पास लैंड बैंक के मामले में पुणे, हैदराबाद और मुंबई के बाद सबसे अधिक भूमि है। अन्य शहरों की तुलना में, जयपुर में इस तरह का विस्तार कहीं और नहीं हो रहा है। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर भी ऊर्ध्वमुखी विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं।


भविष्य की चुनौतियां

जेडीए के आगामी भूमि अधिग्रहण के साथ, स्थानीय लोगों को विकास के सपने दिखाए जाएंगे, लेकिन वास्तविकता यह है कि इससे केवल कुछ विशेष लोगों को लाभ होगा। भूमाफिया अवैध कॉलोनियों का निर्माण शुरू कर देंगे, जिससे जयपुर के आसपास की कृषि भूमि समाप्त हो जाएगी और हरियाली की जगह कंक्रीट के जंगल खड़े हो जाएंगे।


बुनियादी सुविधाओं की कमी

शहर के बाहरी इलाकों में बुनियादी सुविधाओं का विकास नहीं हो रहा है। जो गांव नए जोड़े गए हैं, उनमें विकास पहुंचने में कई साल लगेंगे। सड़कों का नेटवर्क भी जटिल होगा, क्योंकि मौजूदा मास्टरप्लान के तहत कई सेक्टर की सड़कें अधूरी हैं।


जेडीए का तर्क

जेडीए अधिकारियों का कहना है कि जयपुर में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, जिससे यह बेंगलूरु, हैदराबाद और अन्य प्रमुख शहरों के स्तर पर पहुंच सकता है। उनका तर्क है कि जयपुर का भौगोलिक स्थान इसे विशेष बनाता है।


मास्टरप्लान का इतिहास

1971 में पहले मास्टरप्लान के तहत 392 वर्ग किमी का क्षेत्र शामिल किया गया था। अब 2047 के मास्टरप्लान में लगभग 6000 वर्ग किमी का क्षेत्र शामिल किया जाएगा।


विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का मानना है कि बिखरे विकास से आधारभूत संरचना का निर्माण करना कठिन होगा। यदि जेडीए पुराने क्षेत्रफल पर ध्यान केंद्रित करता, तो बेहतर परिणाम मिल सकते थे। अचानक बड़ा विस्तार बिना उचित अध्ययन के उचित नहीं है।


-चन्द्र शेखर पाराशर, सेवानिवृत्त, अतिरिक्त मुख्य नगर नियोजक