जम्मू-कश्मीर में शहादत दिवस: राजनीतिक विवाद और सांस्कृतिक टकराव
हर साल 13 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में शहादत दिवस के अवसर पर राजनीतिक दलों के बीच टकराव बढ़ जाता है। 1931 में हुई गोलीबारी की घटना को लेकर PDP और NC श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जबकि केंद्र सरकार इसे सांप्रदायिक उन्माद से जोड़ती है। जानें इस दिन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में इसकी महत्ता।
Jul 11, 2025, 14:53 IST
शहादत दिवस की पृष्ठभूमि
हर साल 13 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में "शहादत दिवस" का महत्व बढ़ जाता है। इस वर्ष भी विभिन्न राजनीतिक दल इस दिन को लेकर आपस में टकरा रहे हैं। 1931 में इसी दिन डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह की सेना ने जम्मू की जेल के बाहर प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोलीबारी की थी, जिसमें 22 लोगों की जान गई थी। इन्हें "शहीद" मानते हुए कश्मीर की कुछ पार्टियां, विशेषकर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) और नेशनल कांफ्रेंस (NC), हर साल श्रद्धांजलि अर्पित करती हैं। हाल के वर्षों में इस दिन को लेकर राज्य में गहरी राजनीतिक खींचतान देखने को मिल रही है।
13 जुलाई 1931 की घटना
13 जुलाई 1931 को श्रीनगर सेंट्रल जेल के बाहर एक व्यक्ति के समर्थन में लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई थी, जिस पर राजद्रोह का आरोप था। आरोप था कि उसने महाराजा हरि सिंह के शासन को चुनौती दी थी। जब जेल में सुनवाई चल रही थी, तभी बाहर उपस्थित लोगों पर गोलीबारी की गई, जिसमें 22 लोग मारे गए। नेशनल कांफ्रेंस और बाद में PDP ने इन लोगों को "आज़ादी के लिए शहीद" बताया और 13 जुलाई को कश्मीरी संघर्ष का प्रतीक माना।
राजनीतिक दलों की भूमिका
नेशनल कांफ्रेंस के संस्थापक शेख अब्दुल्ला ने इन 22 लोगों को "कश्मीर की आज़ादी की नींव" कहा था। PDP भी इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हर साल श्रद्धांजलि देती रही है। अब 13 जुलाई को फिर से अवकाश घोषित करने की मांग उठ रही है, जिसे PDP और NC दोनों राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं।
केंद्र सरकार का दृष्टिकोण
वहीं, केंद्र सरकार और भाजपा इस दिन को "सांप्रदायिक उन्माद" से जोड़ते हैं। उनका तर्क है कि यह एकतरफा इतिहास का महिमामंडन है, जो डोगरा शासन को गलत रूप में प्रस्तुत करता है और कश्मीर की विविध सांस्कृतिक विरासत के खिलाफ जाता है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद शहादत दिवस को आधिकारिक छुट्टी की सूची से हटा दिया गया था।
सांस्कृतिक और भावनात्मक टकराव
13 जुलाई की घटना को कश्मीर घाटी में "प्रतिरोध" का प्रतीक माना जाता है, जबकि जम्मू क्षेत्र, जहां डोगरा समुदाय की मजबूत उपस्थिति है, इसे डोगरा सम्मान पर हमला मानता है। इस प्रकार, छुट्टी घोषित करने या सार्वजनिक श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित करने की मांग से जम्मू-कश्मीर के भीतर सांस्कृतिक और भावनात्मक टकराव उत्पन्न होता है। PDP और NC अपनी 'कश्मीरियत' और 'मूल पहचान' की रक्षा की बात कर रहे हैं, जबकि भाजपा इसे 'नए कश्मीर' के एजेंडे के खिलाफ मानती है।