जम्मू-कश्मीर में गुज्जर-बकरवाल समुदाय और सेना के बीच विश्वास की कमी
गुज्जर-बकरवाल समुदाय और सेना के बीच अविश्वास
जम्मू-कश्मीर में हाल के महीनों में कई आतंकवादियों ने घुसपैठ की कोशिशें की हैं, जिसके चलते सेना और आतंकियों के बीच मुठभेड़ की घटनाएं बढ़ी हैं। यह घटनाएं मुख्य रूप से ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हुई हैं, जिससे सेना की चिंताएं बढ़ गई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सेना को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा और गुज्जर तथा बकरवाल समुदायों का विश्वास पुनः प्राप्त करना होगा, जिन्हें पहाड़ों की 'आंख और कान' माना जाता है।
अधिकारियों और विशेषज्ञों के अनुसार, सुरक्षाबलों और इन समुदायों के बीच अविश्वास बढ़ रहा है, जो सीमा सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। इन समुदायों की जनसंख्या लगभग 23 लाख है, जो पहाड़ों के दुर्गम इलाकों में महत्वपूर्ण जानकारी रखती है।
कई घटनाओं ने सेना और इन समुदायों के बीच संबंधों को कमजोर कर दिया है, जिसमें 2018 का कठुआ बलात्कार मामला और 2020 का अमशीपुरा फर्जी मुठभेड़ शामिल हैं, जिसमें तीन गुज्जर युवकों की हत्या की गई थी।
2023 में रिश्तों में आई दरार
सेना और गुज्जर-बकरवाल समुदायों के बीच संबंधों को सबसे बड़ा झटका दिसंबर 2023 में लगा, जब पुंछ के टोपा पीर में सैनिकों पर हमला हुआ। इस घटना के बाद सेना ने तीन लोगों को हिरासत में लिया, जिनकी बाद में मौत हो गई। अधिकारियों का कहना है कि इन घटनाओं ने गुज्जर और बकरवाल युवाओं को अलग-थलग कर दिया है, जिससे स्थानीय स्तर पर सेना को जानकारी मिलना लगभग बंद हो गया है।
गुज्जर नेता की चिंता
गुज्जर नेता और कांग्रेस के सचिव शाहनवाज चौधरी ने 'विश्वास की कमी' पर चिंता जताते हुए कहा कि समुदायों को उचित सम्मान नहीं दिया गया है। उन्होंने वन भूमि पर अधिकारों के मुद्दे को उठाया, जिसके लिए गुज्जर और बकरवाल समुदायों को अभी तक व्यक्तिगत दावे नहीं मिले हैं।
चौधरी ने टोपा पीर की घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि इसे पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) ने प्रभावित किया था, जिससे समुदाय का विश्वास टूटा है। उन्होंने दोनों पक्षों के बीच बढ़ती खाई की चेतावनी दी और प्रशासन की निष्क्रियता की ओर इशारा किया।
रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल का बयान
रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल डी.एस. हुड्डा ने इस स्थिति पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि गुज्जर और बकरवाल जनजातियों की भूमिका को सही तरीके से नहीं समझा गया है। उन्होंने याद दिलाया कि पहली महिला ग्राम रक्षा समिति (वीडीसी) सदस्य गुज्जर और बकरवाल जनजातियों से थीं।
हुड्डा ने कहा कि वीडीसी की महिला सदस्यों ने 2003 में सफल 'सर्प विनाश' मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने जनजातियों के साथ संबंधों को फिर से स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया, यह कहते हुए कि ये जनजातियां न केवल सेना की 'आंख और कान' हैं, बल्कि 'रक्षा की पहली पंक्ति' भी हैं।