जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ नई रणनीति: नेटवर्क को खत्म करने की दिशा में कदम
आतंकवाद के खिलाफ सुरक्षा एजेंसियों की नई पहल
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ चल रही कार्रवाई अब पारंपरिक मुठभेड़ों से आगे बढ़ चुकी है। सुरक्षा एजेंसियों का ध्यान अब केवल आतंकियों को समाप्त करने पर नहीं, बल्कि उस संपूर्ण 'इकोसिस्टम' को नष्ट करने पर है जो आतंकवाद को बढ़ावा देता है। इसमें फर्जी सिम कार्ड, जेलों से संपर्क और स्थानीय सहयोगी शामिल हैं, जो आतंकियों को सहायता प्रदान करते हैं। हाल ही में, जम्मू-कश्मीर पुलिस और काउंटर इंटेलिजेंस कश्मीर (सीआईके) ने आतंकवादी नेटवर्क से जुड़े व्यक्तियों और पाकिस्तान-आधारित आतंकियों के स्थानीय सहयोगियों के खिलाफ एक समन्वित कार्रवाई की है। श्रीनगर, बारामूला, कुलगाम, पुलवामा, शोपियां, अनंतनाग और कुपवाड़ा जिलों में कई ठिकानों पर छापे मारे गए।
सुरक्षा बलों की कार्रवाई और जब्त सामग्री
इन छापेमारी के दौरान, पुलिस ने सैकड़ों सिम कार्ड और मोबाइल उपकरण जब्त किए, जिनका उपयोग पाकिस्तानी हैंडलरों द्वारा सुरक्षित संचार के लिए किया जा रहा था। सीआईके ने नौ संदिग्धों को हिरासत में लिया, जिनमें एक महिला भी शामिल है। इसी समय, जम्मू क्षेत्र के रामबन, डोडा, किश्तवाड़, राजौरी और कठुआ जिलों में भी तलाशी अभियान चलाए गए। सुरक्षा बलों ने उन परिवारों के घरों की जांच की जिनके सदस्य पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में रह रहे हैं या आतंकियों से जुड़े होने की आशंका है। कठुआ जिले में दो विशेष पुलिस अधिकारियों को आतंकियों से संबंध के आरोप में बर्खास्त किया गया है।
जेलों में सख्त निगरानी और मानवाधिकार चिंताएँ
कश्मीर की जेलों में अब सख्त निगरानी लागू की गई है। अनंतनाग, कुपवाड़ा और बारामूला की जेलों में छापों के दौरान मोबाइल फोन, सिम कार्ड और कागज़ी नोट्स बरामद किए गए हैं। संकेत मिले हैं कि कुछ कैदी बाहर के ऑपरेटिव्स से एन्क्रिप्टेड ऐप्स के माध्यम से संपर्क में थे। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बताया कि यह कार्रवाई 'निवारक प्रकृति' की है ताकि राष्ट्र-विरोधी नेटवर्क पुनर्गठित न हो सकें। हालांकि, कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई है कि इस तरह की व्यापक छानबीन में कभी-कभी निर्दोष परिवार भी संदेह के घेरे में आ जाते हैं।
सुरक्षा विशेषज्ञों का समर्थन
सुरक्षा विशेषज्ञ इस नई रणनीति का समर्थन कर रहे हैं। पूर्व उत्तरी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) बीएस जसवाल ने कहा, 'कश्मीर में आतंकवाद अब विकेंद्रीकृत और डिजिटल रूप ले चुका है। इसलिए इसे केवल बंदूक से नहीं, बल्कि तकनीक और इंटेलिजेंस से जवाब देने की आवश्यकता है।'
आतंकवाद के खिलाफ नई लड़ाई
कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अब केवल बंदूक की नोक पर नहीं, बल्कि डेटा, उपकरण और निवारक रणनीतियों के माध्यम से लड़ी जा रही है। वर्षों तक चलने वाली मुठभेड़ों और घेराबंदियों की नीति ने आतंकियों की संख्या तो घटाई, लेकिन उनके नेटवर्क की जड़ें बनी रहीं। सोशल मीडिया प्रचार, फर्जी सिम कार्ड नेटवर्क और जेलों से चल रही गुप्त गतिविधियाँ आतंक के छिपे स्रोत बने रहे हैं। पुलिस की यह नई रणनीति, जिसे 'नेटवर्क डिस्मेंटलिंग' कहा जा रहा है, इस बात का संकेत है कि अब फोकस 'आतंकी' से ज्यादा 'आतंकी तंत्र' पर है।
भविष्य की सुरक्षा नीति का मॉडल
डिजिटल युग में जब कट्टरपंथी तत्व सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं को प्रभावित कर रहे हैं, सीआईके और जम्मू-कश्मीर पुलिस का यह डेटा-आधारित ऑपरेशन भविष्य की सुरक्षा नीति का एक आदर्श उदाहरण बन सकता है। कश्मीर में आतंकवाद-विरोधी कार्रवाई का यह नया अध्याय यह दर्शाता है कि भारत अब केवल हमलों पर प्रतिक्रिया नहीं दे रहा, बल्कि आतंक के स्रोतों को जड़ से समाप्त करने का प्रयास कर रहा है। फर्जी सिम कार्ड से लेकर जेल के भीतर के नेटवर्क तक, हर कड़ी पर प्रहार किया जा रहा है। यदि यह अभियान जनसमर्थन और विधिक पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ता है, तो कश्मीर में स्थायी शांति सुनिश्चित की जा सकेगी।