छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: पत्नी के विवाहेतर संबंध पर गुजारा भत्ता खारिज
महत्वपूर्ण निर्णय
रायपुर: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में पत्नी के विवाहेतर संबंधों को ध्यान में रखते हुए, पति से गुजारा भत्ता मांगने की याचिका को अस्वीकार कर दिया। न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा ने यह निर्णय पुनरीक्षण याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया। इन याचिकाओं में रायपुर की पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पति को पत्नी को हर महीने 4000 रुपये का गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था।
फैसले की चुनौती
दोनों पक्षों ने इस फैसले को चुनौती दी थी। पति ने गुजारा भत्ता पूरी तरह से समाप्त करने की मांग की, जबकि पत्नी ने इसे बढ़ाकर 20000 रुपये करने की इच्छा जताई। अदालत ने पति की याचिका को स्वीकार किया और पत्नी की याचिका को खारिज कर दिया।
पति के छोटे भाई से संबंध
पति के वकील ने अदालत में तर्क दिया कि पत्नी गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है, क्योंकि उसका संबंध पति के छोटे भाई के साथ है। वकील ने बताया कि पारिवारिक अदालत ने 8 सितंबर 2023 को तलाक का निर्णय सुनाते हुए इस तथ्य को स्वीकार किया था। उन्होंने कहा कि पारिवारिक अदालत ने इस महत्वपूर्ण सबूत को नजरअंदाज किया और सीआरपीसी की धारा 125(4) को भी अनदेखा किया, जो स्पष्ट रूप से उस पत्नी को गुजारा भत्ता देने से रोकती है जो व्यभिचार में लिप्त है या बिना उचित कारण के अपने वैवाहिक घर को छोड़ देती है।
पत्नी के वकील का तर्क
पत्नी के वकील ने व्यभिचार के आरोप का विरोध किया। उन्होंने कहा कि कोई भी पुराना विवाहेतर संबंध 'निरंतर कार्य' नहीं है। वकील ने जोर देकर कहा कि 'व्यभिचार में रहने' के लिए एक जारी अवैध संबंध की आवश्यकता होती है। उन्होंने यह भी कहा कि पत्नी उस समय अपने भाई और भाभी के साथ रह रही थी। उन्होंने तर्क किया कि 4000 रुपये का गुजारा भत्ता पर्याप्त नहीं था, क्योंकि पत्नी की कोई स्वतंत्र आय नहीं है और पति के पास कई आय के स्रोत हैं।
उच्च न्यायालय का निर्णय
उच्च न्यायालय ने कहा कि तलाक का निर्णय जो पत्नी के व्यभिचार के आधार पर दिया गया था, सीआरपीसी की धारा 125(4) के तहत उसकी अयोग्यता का कानूनी प्रमाण है। उच्च न्यायालय ने पति की पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार किया और पारिवारिक अदालत के गुजारा भत्ता आदेश को रद्द कर दिया। पत्नी की गुजारा भत्ता बढ़ाने की याचिका को भी खारिज कर दिया गया। अदालत ने माना कि पत्नी का विवाहेतर संबंध सिद्ध हो गया है, इसलिए वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है। अदालत ने सीआरपीसी की धारा 125(4) के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया।