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चुनावी स्याही: एक अद्भुत प्रक्रिया और इसकी कीमत

इस लेख में हम चुनावी स्याही के निर्माण, उसकी लागत और कार्यप्रणाली के बारे में जानेंगे। क्या आपने कभी सोचा है कि यह स्याही कैसे बनती है और इसकी कीमत क्या होती है? जानें इस अद्भुत प्रक्रिया के पीछे का विज्ञान और कैसे यह स्याही मतदान के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
 

चुनावों में मतदान का अनूठा प्रतीक

चुनावी स्याही

आज बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हो रहा है। सभी नागरिक जो मतदान केंद्र पर जाकर अपने मताधिकार का उपयोग कर रहे हैं, उनकी उंगली पर एक नीली स्याही का निशान लगाया जा रहा है। यह निशान लोकतंत्र में भागीदारी का प्रतीक है और यह दर्शाता है कि आपने अपने कर्तव्य का पालन किया है। यह स्याही कुछ समय बाद गहरी काली हो जाती है और इसे हटाना आसान नहीं होता, यह कई हफ्तों तक बनी रहती है।

हर चुनाव में हम इस निशान को देखते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह अद्भुत स्याही कैसे बनती है? इसे कौन सी कंपनी तैयार करती है और एक वोटर पर लगने वाली इस स्याही की लागत कितनी होती है? आज हम आपको इस लोकतांत्रिक रंग की पूरी कहानी बताएंगे।


एकमात्र कंपनी का रहस्य

एक कंपनी, जिसका फॉर्मूला है ‘टॉप सीक्रेट’

इस विशेष स्याही का निर्माण केवल एक सरकारी कंपनी द्वारा किया जाता है। कर्नाटक के मैसूर में स्थित ‘मैसूर पेंट्स एंड वॉर्निश लिमिटेड’ (MPVL) ही एकमात्र कंपनी है जो चुनाव आयोग के लिए इस स्याही का उत्पादन करती है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस स्याही का फॉर्मूला ‘टॉप सीक्रेट’ है।

यह फॉर्मूला नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (NPL) द्वारा विकसित किया गया था और इसे MPVL को सौंपा गया था। अब तक इस फॉर्मूले को सार्वजनिक नहीं किया गया है। कानूनी रूप से, किसी अन्य निजी या सरकारी कंपनी को इसे बनाने की अनुमति नहीं है। भारत में 1962 के आम चुनावों में पहली बार इस अमिट स्याही का उपयोग किया गया था, और तब से यह भारतीय लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा बन गई है।

भारत में एक और कंपनी, हैदराबाद की रायडू लेबोरेटरी, इस प्रकार की स्याही बनाती है, लेकिन उसका उपयोग भारतीय चुनावों में नहीं होता। वह कंपनी अपनी स्याही को कई अन्य देशों में निर्यात करती है। लेकिन भारतीय चुनाव आयोग पूरी तरह से मैसूर की MPVL पर भरोसा करता है। यह कंपनी न केवल चुनावी स्याही, बल्कि भारतीय नोटों की छपाई में उपयोग होने वाली विशेष स्याही भी बनाती है।


सस्ती लेकिन प्रभावी

700 वोटों पर खर्च होते हैं सिर्फ 174 रुपये

लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण प्रतीक की कीमत जानकर आप चौंक सकते हैं। यह स्याही कांच की छोटी-छोटी शीशियों में आती है। एक शीशी में 10 मिलीग्राम (mg) स्याही होती है। पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव के दौरान इस 10mg वाली एक शीशी की कीमत 174 रुपये निर्धारित की गई थी।

चुनाव आयोग के मानकों के अनुसार, एक शीशी से लगभग 700 मतदाताओं की उंगलियों पर निशान लगाया जा सकता है। यदि हम इसका हिसाब लगाएं, तो एक मतदाता पर इस अमिट स्याही का खर्च लगभग 25 पैसे आता है। इसका मतलब है कि 25 पैसे में यह सुनिश्चित हो जाता है कि चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष रहे और कोई भी व्यक्ति दोबारा वोट न डाल सके।


साइंस का जादू

कैसे काम करती है यह स्याही?

इस स्याही के न मिटने के पीछे एक खास वैज्ञानिक कारण है। इसे बनाने में ‘सिल्वर नाइट्रेट’ नामक रसायन का मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। इसके साथ कुछ अन्य रसायनों को भी मिलाया जाता है, जिनका फॉर्मूला गुप्त रखा गया है।

जैसे ही यह स्याही आपकी उंगली की त्वचा के संपर्क में आती है, यह 20 से 30 सेकंड के भीतर अपना काम शुरू कर देती है। स्याही में मौजूद सिल्वर नाइट्रेट, हमारी त्वचा पर मौजूद नमक (सोडियम) के साथ रासायनिक क्रिया करता है। इस रिएक्शन से ‘सोडियम क्लोराइड’ बनता है। यही कारण है कि पहले यह स्याही नीली दिखती है, लेकिन कुछ ही घंटों में यह गहरी काली पड़ जाती है।

इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि पानी के संपर्क में आने पर यह और भी ज्यादा पक्की और गाढ़ी हो जाती है। यही वजह है कि इस पर साबुन, डिटर्जेंट या किसी भी तरह के रसायनों का असर नहीं होता और यह निशान तब तक नहीं मिटता जब तक त्वचा के पुराने सेल्स खुद-ब-खुद खत्म नहीं हो जाते। इसमें एक महीने से ज्यादा का वक्त भी लग सकता है।

कंपनी अब भविष्य की जरूरतों को देखते हुए कांच की इन शीशियों की जगह मार्कर पेन का विकल्प भी तलाश रही है। यह प्रोडक्ट फिलहाल विकास के चरण में है और यदि यह सफल होता है, तो भविष्य में मतदान केंद्र पर स्याही लगाना और भी आसान हो जाएगा।