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चिराग पासवान की रणनीति से बिहार चुनाव में सीट बंटवारे में बदलाव

चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर अपनी रणनीति से बीजेपी और जेडीयू पर दबाव बनाया है। इस बार उन्हें 29 सीटें मिली हैं, जो कि उनकी राजनीतिक कुशलता का परिणाम है। जानें कैसे उन्होंने जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ मिलकर एनडीए के भीतर एक प्रभावी समूह बनाया और बीजेपी को अपनी ताकत का अहसास कराया। इस लेख में चिराग की रणनीति और पिछले चुनावों के अनुभवों का विश्लेषण किया गया है।
 

बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा

चिराग पासवान

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए में सीटों का बंटवारा तय हो गया है। इस बार बीजेपी और जेडीयू को 101-101 सीटें मिली हैं, जबकि चिराग पासवान को 29, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को 6-6 सीटें दी गई हैं। मांझी और कुशवाहा की नाराजगी के बावजूद, चिराग पासवान इस बंटवारे से संतुष्ट नजर आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि उनके दबाव के कारण उन्हें यह संख्या मिली है।

चिराग पासवान ने बिहार की राजनीति में एक कुशल रणनीतिकार के रूप में अपनी पहचान बनाई है। उन्होंने जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ मिलकर एनडीए के भीतर एक दबाव समूह बनाया, जिससे बीजेपी और जेडीयू पर असर पड़ा और उन्हें 2025 विधानसभा चुनाव के लिए 29 सीटें मिलीं।


बीजेपी पर चिराग का दबाव

चिराग ने बीजेपी को अपनी ताकत का अहसास कराया

चिराग पासवान ने बिहार चुनाव की गतिविधियों के शुरू होते ही बीजेपी और जेडीयू पर सीटों के बंटवारे को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी और जेडीयू ने समान संख्या में सीटों पर चुनाव लड़ने पर सहमति जताई। चिराग ने इस बार एक नई रणनीति अपनाई है, जिसमें उन्होंने 2020 के अनुभवों को ध्यान में रखा। इस बार उन्होंने बिना किसी विवाद के अपनी ताकत साबित की है, यह दिखाते हुए कि वे केवल 5-6% वोट बैंक के नेता नहीं हैं।


पिछले चुनाव की तुलना में सुधार

पिछले चुनाव में चिराग को मिली थी केवल 1 सीट

चिराग पासवान ने 2020 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा था, जिसमें वे केवल एक सीट जीत सके थे। ऐसी स्थिति से बचने के लिए उन्होंने पहले से ही तैयारी शुरू कर दी थी। चिराग ने जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया। पहले बीजेपी ने मांझी का उपयोग चिराग के खिलाफ किया था, लेकिन चिराग ने मांझी के साथ मिलकर समीकरण बदल दिया।


बीजेपी नेताओं की कोशिशें

बीजेपी नेताओं ने चिराग को मनाने में नहीं छोड़ी कसर

सीटों के बंटवारे के लिए चिराग को मनाने के लिए बीजेपी के कई नेता उनके घर पहुंचे, जिनमें धर्मेंद्र प्रधान, विनोद तावड़े और मंगल पांडे शामिल थे। नित्यानंद राय ने तो एक दिन में तीन बार चिराग के घर का दौरा किया। हालांकि, इसके बावजूद बात नहीं बनी। नित्यानंद राय ने चिराग की मां से मुलाकात कर पारिवारिक संबंधों का हवाला दिया, जिसके बाद चिराग कुछ हद तक नरम पड़े। इसी कारण चिराग को पहले जो 18-22 सीटें मिलने की उम्मीद थी, वह बढ़कर 29 हो गई।


चिराग की रणनीति का प्रभाव

चिराग की रणनीति ने बीजेपी की भी मदद की

2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान का प्रदर्शन काफी प्रभावशाली रहा था। इस चुनाव में उनके चाचा पशुपति पारस को बड़ा झटका लगा था। चुनाव के माध्यम से उन्होंने यह साबित कर दिया कि रामविलास पासवान की विरासत के असली हकदार वही हैं। चिराग के कारण ही बिहार में बीजेपी पहली बार जेडीयू के बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने में सफल हुई है। चिराग पासवान को उनके पिता की तरह मौसम वैज्ञानिक भी कहा जा रहा है, क्योंकि वे राजनीतिक परिस्थितियों को समझने और गठबंधन में अधिकतम लाभ उठाने में माहिर हैं।