चारा घोटाला: बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा स्कैंडल
चारा घोटाले का परिचय
चारा घोटाला: भारत में घोटालों की कई कहानियाँ प्रचलित हैं, लेकिन आज हम एक ऐसे घोटाले की चर्चा करेंगे जो सबसे अधिक चर्चित रहा है। इसे ‘चारा घोटाला’ के नाम से जाना जाता है, जिसमें 950 करोड़ रुपये का गबन हुआ। इस मामले ने एक मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली और बिहार की राजनीतिक दिशा को बदल दिया। आइए जानते हैं इस घोटाले की पूरी कहानी।
घोटाले की शुरुआत
1970 के दशक में, बिहार के पशुपालन विभाग में सरकारी खर्च के नाम पर फर्जी बिल बनाना शुरू हुआ। शुरुआत में यह छोटी-मोटी हेराफेरी थी, लेकिन धीरे-धीरे इसमें अधिकारियों, सप्लायर्स और नेताओं की मिलीभगत बढ़ने लगी। सरकार ने पशुओं के चारे, दवाओं और उपकरणों के लिए पैसे आवंटित किए, लेकिन असल में इन पैसों का उपयोग नहीं हुआ।
घोटाले का खुलासा
चारा घोटाला क्या है…
बिहार के पत्रकार रवि एस. झा ने इस घोटाले को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया। उनकी रिपोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इसमें केवल अधिकारी ही नहीं, बल्कि कई नेता भी शामिल थे। इस खुलासे ने घोटाले की सच्चाई को सामने ला दिया।
सीबीआई जांच और गिरफ्तारी
जनता के दबाव और अदालत की निगरानी में, मार्च 1996 में पटना हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी। जांच के दौरान कई बड़े नाम सामने आए, जिनमें मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा शामिल थे। घोटाले का दायरा 50 से अधिक मामलों तक फैल गया।
सीबीआई ने 10 मई 1997 को लालू प्रसाद यादव पर मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी, जिसे राज्यपाल ने मंजूरी दी। जैसे ही गिरफ्तारी का समय आया, लालू ने अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) बनाई और 25 जुलाई को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
सजा और परिणाम
लालू प्रसाद यादव को 1997 में गिरफ्तार किया गया और उन्हें रांची जेल में रखा गया। 2000 के बाद से चारा घोटाले से जुड़े 53 मामलों में सुनवाई शुरू हुई। मई 2013 तक 44 मामलों का निपटारा हो चुका था, जिसमें लालू को कुल 14 साल की सजा सुनाई गई।
लालू की कुर्सी क्यों गई थी
सीबीआई ने कुल 66 मामले दर्ज किए, जिनमें से 53 झारखंड और बाकी बिहार में ट्रांसफर हुए। चारा घोटाले के पांच मामलों में लालू यादव को दोषी ठहराया गया है।
लालू यादव पर चल रहे मामले
चाईबासा कोषागार केस: 37.70 करोड़ रुपये का गबन और लालू यादव को 5 साल की सजा.
देवघर कोषागार केस: 89.27 लाख रुपये का गबन और लालू यादव को 3.5 साल की सजा. फाइन- 10 लाख.
चाईबासा दूसरा केस: 33.13 करोड़ रुपये का गबन और लालू यादव को 5 साल की सजा.
दुमका कोषागार केस: 3.13 करोड़ रुपये का गबन और लालू यादव को 14 साल की सजा (7+7 साल). फाइन- 60 लाख.
डोरंडा कोषागार केस: 139.35 करोड़ रुपये का गबन और लालू यादव को 5 साल सजा. फाइन- 60 लाख.
रांची कोषागार (छठा मामला): 1.84 करोड़ रुपये का गबन. अभी सुनवाई जारी है.
अगर इन सभी मामलों के गबन को जोड़ दिया जाए तो लालू यादव की देनदारी करीब 304 करोड़ रुपये होगी। इसका मतलब है कि अगर बिहार सरकार कोर्ट में अपना दावा मजबूती से रखती है, तो लालू यादव को इतने पैसे सरकारी खजाने में जमा करने होंगे।