गोविंद निहालानी की 'अर्ध सत्य' का 42वां वर्ष: एक अद्वितीय पुलिस ड्रामा
अर्ध सत्य: एक प्रभावशाली फिल्म
गोविंद निहालानी की 'अर्ध सत्य' ने भारतीय सिनेमा में पुलिस ड्रामा की एक नई परिभाषा स्थापित की। यह फिल्म उस समय रिलीज हुई जब जीतेन्द्र की साउथ-स्टाइल की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर राज कर रही थीं। राजेश खन्ना के लिए यह साल उनके करियर के अंतिम हिट्स का भी गवाह बना।
1983 में, जहां 'अंधा कानून' जैसी फिल्में थीं, वहीं 'अर्ध सत्य' ने अपराध, सजा और कानून के प्रति एक गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। निहालानी ने इस फिल्म में विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित पटकथा का उपयोग किया, जिसमें ओम पुरी ने एक अनूठे किरदार के रूप में अपनी पहचान बनाई।
ओम पुरी का किरदार, अनंत वेलंकर, एक ऐसे पुलिस अधिकारी का है जो अपने पेशे में संघर्ष कर रहा है। फिल्म के अंत में, वह अपने दुश्मन को मारने के बाद अपने पुलिस स्टेशन लौटता है, यह दर्शाते हुए कि वह अपने सिद्धांतों के लिए कितना प्रतिबद्ध है।
आज के समय में, 'अर्ध सत्य' की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है, जब पुलिस बल को अक्सर गलत तरीके से देखा जाता है। अनंत वेलंकर का संघर्ष भारतीय नौकरशाही की कमजोरी को दर्शाता है।
फिल्म में अनंत का चरित्र एक साधारण सरकारी अधिकारी के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो अपने काम के प्रति ईमानदार रहने की कोशिश कर रहा है। निहालानी ने मुंबई के अंडरबेली को दिखाने के लिए ओम पुरी को चुना, जो इस फिल्म की वास्तविकता को और भी गहरा बनाता है।
अनंत का संघर्ष और उसकी निराशा दर्शकों को गहराई से प्रभावित करती है। फिल्म में स्मिता पाटिल का किरदार, जो आदर्शवाद का प्रतीक है, अनंत के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
निहालानी ने इस फिल्म में हिंसा को भी बिना किसी हिचकिचाहट के दिखाया है, जो अनंत के मनोविज्ञान के अंधेरे पहलुओं को उजागर करता है।
फिल्म के सहायक पात्रों को भी निहालानी ने साधारण और वास्तविकता के करीब रखा है, जिससे फिल्म की गहराई और बढ़ जाती है।