गोवर्धन असरानी: हिंदी सिनेमा के दिग्गज का निधन
गोवर्धन असरानी का निधन
गोवर्धन असरानी का निधन: प्रसिद्ध हिंदी फिल्म अभिनेता, निर्देशक और हास्य कलाकार गोवर्धन असरानी, जिन्हें आमतौर पर 'असरानी' के नाम से जाना जाता है, अब हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने आज शाम लगभग 3:30 बजे मुंबई के जुहू स्थित भारतीय आरोग्य निधि अस्पताल में अंतिम सांस ली, जब वे लंबी बीमारी से जूझ रहे थे। उनकी उम्र 84 वर्ष थी। उनका अंतिम संस्कार आज शाम सांताक्रूज़ श्मशान घाट पर परिवार और करीबी दोस्तों की उपस्थिति में शांति से संपन्न हुआ। असरानी की मृत्यु से फिल्म उद्योग में शोक की लहर दौड़ गई है।
असरानी के निजी सहायक बाबूभाई ने बताया कि उन्हें चार दिन पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जब उनके फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा होने की समस्या उत्पन्न हुई थी। डॉक्टरों के प्रयासों के बावजूद, वे बच नहीं सके। बाबूभाई ने कहा, “असरानी साहब ने हमेशा कहा था कि वे शांति से जाना चाहते हैं। उन्होंने अपनी पत्नी मंजू जी से कहा था कि उनकी मृत्यु को कोई तमाशा न बनाया जाए। इसलिए परिवार ने पहले अंतिम संस्कार किया और बाद में उनके निधन की जानकारी दी।”
परिवार ने अभी तक कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन आने वाले दिनों में प्रार्थना सभा आयोजित करने की योजना है।
असरानी की हास्य प्रतिभा
हास्य का पर्याय: असरानी की अमिट छाप
पाँच दशकों से अधिक समय तक, असरानी हिंदी सिनेमा के सबसे प्रिय अभिनेताओं में से एक रहे। उन्होंने 350 से अधिक फिल्मों में काम किया और हर बार अपने हास्य और स्वाभाविक अभिनय से दर्शकों का दिल जीता। 1970 का दशक उनके करियर का स्वर्णकाल रहा, जब उन्होंने कई यादगार भूमिकाएँ निभाईं। ‘मेरे अपने’, ‘कोशिश’, ‘बावर्ची’, ‘परिचय’, ‘अभिमान’, ‘चुपके-चुपके’, ‘छोटी सी बात’, ‘रफू चक्कर’ जैसी फिल्मों ने उन्हें एक पहचान दी, जो आज भी कायम है।
असरानी का सबसे प्रसिद्ध किरदार ‘शोले’ (1975) का जेलर रहा, जिसकी अदायगी और संवाद आज भी दर्शकों के दिलों में बसे हुए हैं। उनकी प्रसिद्ध लाइन “हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं” हिंदी फिल्म इतिहास की सबसे मशहूर कॉमिक लाइनों में से एक बन गई।
असरानी: एक बहुआयामी प्रतिभा
सिर्फ अभिनेता नहीं, निर्देशक और लेखक भी थे असरानी
असरानी ने न केवल पर्दे पर बल्कि पर्दे के पीछे भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। उन्होंने 1977 में ‘चला मुरारी हीरो बनने’ नामक फिल्म लिखी, निर्देशित की और उसमें मुख्य भूमिका निभाई। यह फिल्म एक संघर्षरत अभिनेता की प्रेरक कहानी थी, जो खुद असरानी के जीवन से प्रेरित थी। इसके अलावा, उन्होंने ‘सलाम मेमसाब’ (1979) और कई अन्य फिल्मों का भी निर्देशन किया।
हिंदी सिनेमा के साथ-साथ, असरानी ने गुजराती फिल्मों में भी अपनी पहचान बनाई। 1970 और 1980 के दशक में वे गुजराती फिल्म जगत के प्रमुख चेहरों में से एक रहे।
असरानी का प्रारंभिक जीवन
जयपुर में हुआ था असरानी का जन्म
असरानी का जन्म जयपुर, राजस्थान में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर्स स्कूल, जयपुर से प्राप्त की। अभिनय के प्रति रुझान उन्हें मुंबई तक ले आया, जहाँ उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे से अभिनय का प्रशिक्षण लिया। यहीं से उनके शानदार करियर की शुरुआत हुई।