गरुड़ पुराण में स्नान के नियम: पितृदोष से बचने के उपाय
गरुड़ पुराण का महत्व
गरुड़ पुराण हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है और इसे 18 महापुराणों में गिना जाता है। परंपरागत रूप से, इसे किसी व्यक्ति के निधन के बाद 13 दिनों तक पढ़ा जाता है, जिसके कारण इसे मृत्यु से संबंधित ग्रंथ माना जाता है। हालांकि, गरुड़ पुराण केवल मृत्यु, कर्म और पुनर्जन्म के विषय में नहीं है, बल्कि इसमें जीवन जीने के लिए कई व्यावहारिक और आध्यात्मिक नियम भी शामिल हैं। इसमें नीति, धर्म, आचार, ज्ञान, और मानव व्यवहार से संबंधित शिक्षाएं दी गई हैं। जो लोग इन सिद्धांतों का पालन करते हैं, उन्हें जीवन में सफलता, शांति और सुख प्राप्त होता है।
स्नान से जुड़े नियम
हिंदू शास्त्रों में पूजा, भोजन, यात्रा और दिनचर्या से संबंधित कई नियम बताए गए हैं, जिनमें स्नान के नियम भी शामिल हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, स्नान केवल शरीर की सफाई नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक और ऊर्जा की शुद्धि का एक तरीका भी है।
निर्वस्त्र स्नान के दोष
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि निर्वस्त्र स्नान नहीं करना चाहिए। इसे धार्मिक दृष्टि से अपवित्र माना गया है और देवताओं का अपमान समझा जाता है।
निर्वस्त्र स्नान करने से पितृदोष का संकेत मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इससे पूर्वजों की संतुष्टि नहीं होती और व्यक्ति पर पितृदोष लग सकता है।
इसके अलावा, इस प्रकार का स्नान व्यक्ति के जीवन में वित्तीय बाधाएं, बेचैनी और मानसिक तनाव उत्पन्न कर सकता है।
यह भी माना जाता है कि निर्वस्त्र स्नान करने से नकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के शरीर और मन पर प्रभाव डाल सकती है।
कृष्ण कथा से शिक्षा
एक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार सरोवर में स्नान कर रही गोपियों के वस्त्र छुपा दिए थे। जब गोपियां परेशान हुईं, तब कृष्ण ने उन्हें बताया कि बिना वस्त्र स्नान करना अनुचित है। यह घटना केवल नटखटता नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण नियम का संकेत थी - स्नान हमेशा मर्यादा के साथ होना चाहिए।