गया में पिंडदान: मोक्ष की भूमि और असुर की कथा
गया में पिंडदान का महत्व
गया में पिंड दान
गया का धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म के ग्रंथों में गया को मोक्ष की भूमि माना गया है। यहाँ तर्पण और पिंडदान करने से पितरों को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है। वायु पुराण और गरुड़ पुराण में भी गया में पिंडदान के महत्व का उल्लेख किया गया है, जहाँ पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
गया में पिंडदान करने से वंशजों को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह पवित्र नगरी एक असुर के शरीर पर स्थित है? आइए, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
पौराणिक कथा
गया की पौराणिक कथा के अनुसार, गयासुर नामक एक असुर ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की थी और उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया कि जो भी उसे देखेगा, उसके सभी पाप समाप्त हो जाएंगे और वह सीधे स्वर्ग जाएगा। इस वरदान के कारण पापियों को भी मोक्ष मिलने लगा।
भगवान विष्णु का हस्तक्षेप
इस स्थिति से संसार का संतुलन बिगड़ने लगा। देवताओं ने भगवान श्री हरि विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने गयासुर का विशाल शरीर यज्ञ के लिए दान में मांगा। गयासुर ने अपने शरीर को दान करने के लिए सहमति दी। भगवान विष्णु ने उसके शरीर को गदा से दबाकर उसे एक विशाल पत्थर में बदल दिया।
गया में पिंडदान का विशेष महत्व
भगवान विष्णु ने गयासुर को यह वरदान दिया कि जो भी यहाँ अपने पितरों का श्राद्ध करेगा, उसके पितरों को सीधा मोक्ष प्राप्त होगा। गया क्षेत्र को भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है, जहाँ वे गदाधर रूप में विराजमान हैं। यहाँ पिंडदान करने पर स्वयं नारायण उसे स्वीकार करते हैं और आत्माओं को परमागति प्रदान करते हैं।
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