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गंगा में अस्थि विसर्जन: धार्मिक मान्यताएं और महत्व

गंगा में अस्थि विसर्जन एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो हिंदू धर्म में गहराई से जुड़ा हुआ है। यह प्रक्रिया न केवल परंपरा है, बल्कि आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम भी है। जानिए क्यों गंगा को मोक्षदायिनी माना जाता है और इस परंपरा के पीछे की धार्मिक मान्यताएं क्या हैं।
 

गंगा में अस्थि विसर्जन का महत्व

गंगा में अस्थि विसर्जन

गंगा में अस्थि विसर्जन: हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को बहुत गंभीरता से लिया जाता है। यह केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है। इसके बाद, अस्थियों को पवित्र गंगा नदी में विसर्जित किया जाता है, जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है।

लोग अक्सर यह जानना चाहते हैं कि गंगा में अस्थियों का विसर्जन क्यों किया जाता है। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। आइए, इस विषय पर गहराई से विचार करते हैं।

गरुण पुराण में वर्णित

गरुण पुराण, हिंदू धर्म के 18 प्रमुख पुराणों में से एक है, जिसमें मानव शरीर और मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा का विस्तृत वर्णन है। इसके अनुसार, मानव शरीर पांच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—से बना होता है। मृत्यु के बाद, शरीर इन तत्वों में विलीन हो जाता है। अंतिम संस्कार के समय, शरीर को अग्नि को सौंपा जाता है।

बची हुई अस्थियों को 10 दिनों के भीतर गंगा में विसर्जित किया जाता है। मान्यता है कि गंगा में अस्थियों का विसर्जन करने से आत्मा को शांति मिलती है और वह स्वर्ग की ओर बढ़ती है। पुराणों में कहा गया है कि गंगा में अस्थि विसर्जन से पापों का नाश होता है।

गंगा नदी का मोक्षदायिनी स्वरूप

भागीरथ ने अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रयास किया था, इसलिए इसे मोक्षदायिनी कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि गंगा में अस्थियों का विसर्जन करने से मृतक को स्वर्ग ही नहीं, बल्कि ब्रह्मलोक भी प्राप्त होता है। आत्मा को उस स्थान की प्राप्ति होती है, जहां पुनर्जन्म का चक्र समाप्त हो जाता है और उसे परम शांति मिलती है।

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(इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है।)