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खाटू श्याम बाबा का 'लखदातार' नाम: रहस्य और महत्व

खाटू श्याम बाबा का 'लखदातार' नाम उनके अद्भुत दानशीलता और भक्तों के प्रति करुणा का प्रतीक है। इस लेख में जानें कि क्यों भक्त उन्हें इस नाम से पुकारते हैं और इसके पीछे का गहरा रहस्य क्या है। बाबा का संबंध महाभारत काल के वीर बर्बरीक से भी है, जिन्होंने अपने बलिदान से इस नाम को अमर बना दिया।
 

खाटू श्याम बाबा की कहानी

बाबा खाटू श्याम

बाबा खाटू श्याम की कथा: इस वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है, 1 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन खाटू श्याम बाबा का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। देशभर से लाखों भक्त राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू धाम में अपने आराध्य के दर्शन करने और जन्मोत्सव में शामिल होने के लिए आते हैं। बाबा खाटू श्याम के कई नाम हैं, जैसे ‘हारे का सहारा’, ‘शीश का दानी’, ‘मोरवीनंदन’, और ‘श्याम बाबा’, लेकिन भक्तों के बीच उनका सबसे प्रसिद्ध नाम ‘लखदातार’ है। आइए, इस विशेष अवसर पर जानते हैं कि खाटू श्याम बाबा को ‘लखदातार’ क्यों कहा जाता है और इसके पीछे का रहस्य क्या है।

लखदातार नाम का अर्थ

बाबा श्याम को ‘लखदातार’ नाम से पुकारने के पीछे दो मुख्य कारण हैं, जो उनकी दानशीलता और भक्तों के प्रति करुणा को दर्शाते हैं।

महादाता का दान

असीम दानशीलता: ‘लखदातार’ नाम दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘लाख’ और ‘दातार’।

मान्यता: भक्तों का मानना है कि जो भी भक्त सच्चे मन से बाबा से कुछ मांगता है, बाबा उसे मांगी गई वस्तु से लाखों गुना अधिक देते हैं। उन्हें ‘दाताओं के भी महादाता’ कहा जाता है, क्योंकि वह अपने भक्तों की झोलियाँ भर देते हैं। यही कारण है कि उन्हें ‘लखदातार’ कहा जाता है।

भक्तों की इच्छाओं को समझने वाले

कुछ भक्तों और विद्वानों का मानना है कि ‘लखदातार’ शब्द का एक और गहरा अर्थ है, जो बाबा की अंतर्दृष्टि से जुड़ा है।

‘लखना’ का अर्थ: हिंदी और राजस्थानी में ‘लखना’ का अर्थ है ‘समझ लेना’ या ‘जान लेना’।

भाव: माना जाता है कि बाबा भक्त के मंदिर पहुंचने से पहले ही उनके मन की हर बात जान लेते हैं। वह भक्त की इच्छाओं को समझकर उन्हें लाखों का दान देते हैं, इसलिए वह ‘लख’ (समझने) और ‘दातार’ (देने) वाले कहलाते हैं।

महाभारत काल से जुड़ा दानवीर स्वरूप

खाटू श्याम बाबा का संबंध महाभारत काल के योद्धा बर्बरीक से है, जो पांडु पुत्र भीम के पौत्र थे। उन्हें देवी दुर्गा से तीन शक्तिशाली बाणों का वरदान प्राप्त था।

महाभारत का प्रसंग: जब बर्बरीक महाभारत युद्ध में शामिल होने जा रहे थे, तो उन्होंने अपनी माता से वचन दिया था कि वह ‘हारे हुए’ पक्ष का साथ देंगे।

श्री कृष्ण का शीश दान मांगना: भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक की शक्ति को देखकर उनसे शीश का दान मांगा।

महान बलिदान: बर्बरीक ने बिना किसी संकोच के अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को दान कर दिया। इस बलिदान से प्रसन्न होकर, श्री कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि वह कलियुग में ‘श्याम’ नाम से पूजे जाएंगे और भक्तों की इच्छाएं पूरी करेंगे।

वरदान का फल: बर्बरीक के दानशीलता के कारण भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें ‘लखदातार’ का आशीर्वाद दिया, इसलिए आज उन्हें इस नाम से जाना जाता है।