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कोट्टनकुलंगरा देवी मंदिर: पुरुषों का अनोखा श्रृंगार और पूजा परंपरा

कोट्टनकुलंगरा देवी मंदिर, केरल में स्थित, अपनी अनोखी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है, जहां पुरुष श्रद्धालु देवी की पूजा करने से पहले महिलाओं की तरह सजते हैं। इस मंदिर में साड़ी, चूड़ियां और पारंपरिक गहने पहनकर पूजा की जाती है। यह परंपरा श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है, जो हर साल चाम्याविलक्कू उत्सव के दौरान मनाई जाती है। जानें इस अद्वितीय मंदिर की कहानियों और मान्यताओं के बारे में।
 

कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर की अनोखी परंपरा

कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर

भारत को मंदिरों का देश माना जाता है, जहां अनेक प्राचीन और अद्वितीय मंदिर हैं। केरल के कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर की चर्चा इसकी विशेष परंपरा के कारण होती है। इस मंदिर में देवी की पूजा करने से पहले पुरुष श्रद्धालु महिलाओं की तरह सजते हैं।

यहां पुरुषों के लिए अनिवार्य है कि वे देवी की पूजा से पहले सोलह श्रृंगार करें। पुरुष श्रद्धालु साड़ी, चूड़ियां, बिंदी और पारंपरिक गहने पहनकर देवी भगवती की आराधना करते हैं। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है और इसकी एक विशेष परंपरा है, जिसे चमायाविलक्कू कहा जाता है। इस अनुष्ठान में पुरुष महिलाएं बनकर पूजा करते हैं।

श्रद्धा और आस्था का प्रतीक

इसके बाद, पुरुष देवी की पूजा करते हैं और नौकरी, विवाह, स्वास्थ्य और पारिवारिक सुख की प्रार्थना करते हैं। यह परंपरा श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। हिंदू धर्म में हर त्योहार की अपनी विशेष परंपराएं होती हैं। चाम्याविलक्कू उत्सव हर साल 23-24 मार्च को मनाया जाता है।

इस दौरान हजारों पुरुष महिलाओं की तरह सजकर मंदिर पहुंचते हैं। स्थानीय मान्यता है कि मंदिर में देवी की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी। इस मंदिर का गर्भ गृह न तो छत है और न ही कलश, और यह केरल का एकमात्र ऐसा मंदिर है। यहां हर साल देवी की मूर्ति का आकार कुछ इंच बढ़ता है, ऐसा लोगों का विश्वास है।

मंदिर से जुड़ी कथाएं

एक मान्यता के अनुसार, वर्षों पहले कुछ चरवाहों ने यहां महिलाओं के वेश में एक पत्थर पर फूल अर्पित किए थे, जिसके बाद एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई। दूसरी कथा में, पत्थर पर नारियल फोड़ने के बाद खून निकलने लगा, जिससे लोगों की आस्था बढ़ी और पूजा शुरू हुई। इन धार्मिक मान्यताओं के कारण यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।

मंदिर परिसर में विशेष मेकअप रूम बनाए गए हैं ताकि पुरुषों को श्रृंगार करने में कोई कठिनाई न हो। मान्यता है कि जो पुरुष महिला के वेश में पूजा करते हैं, उनकी पूजा से देवी जल्दी प्रसन्न होती हैं और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।