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केरल हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: वक्फ संपत्ति का मनमाना दावा अस्वीकार

केरल हाईकोर्ट ने मुनंबम जमीन विवाद में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें वक्फ संपत्ति के मनमाने दावों को अस्वीकार किया गया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना ठोस सबूत के किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं माना जा सकता। इस निर्णय ने ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और कोर्ट के तर्क।
 

मुनंबम जमीन विवाद पर केरल हाईकोर्ट का निर्णय

केरल हाईकोर्ट ने मुनंबम जमीन विवाद पर सुनाया महत्वपूर्ण फैसला

केरल हाईकोर्ट ने मुनंबम वक्फ जमीन विवाद पर एक सख्त निर्णय दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी संपत्ति को बिना ठोस सबूत के वक्फ संपत्ति के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती। न्यायालय ने चेतावनी दी कि यदि ऐसा किया गया, तो ऐतिहासिक इमारतें जैसे ताजमहल और लाल किला भी वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित की जा सकती हैं।

कोर्ट ने कहा, “यदि वक्फ की मनमानी घोषणाओं को मान लिया गया, तो भविष्य में किसी भी इमारत को वक्फ संपत्ति के रूप में रंगा जा सकता है, जिसमें इस कोर्ट की इमारत भी शामिल है।”

वक्फ बोर्ड की मनमानी पर रोक

कोर्ट ने यह भी कहा कि वक्फ बोर्डों को मनमाने तरीके से कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि इससे संविधान के अनुच्छेद 300ए, 19 और 21 के तहत संपत्ति के अधिकार, व्यवसाय करने का अधिकार और जीवन एवं आजीविका के अधिकार को खतरा होगा।

मामले का सारांश

मुनंबम जमीन विवाद उस भूमि से संबंधित है, जो पहले 404.76 एकड़ में फैली हुई थी, लेकिन समुद्री कटाव के कारण अब यह लगभग 135.11 एकड़ रह गई है। 1950 में, यह भूमि सिद्दीकी सैत द्वारा फारूक कॉलेज को दान की गई थी। हालांकि, इस भूमि पर पहले से कई लोग निवास कर रहे थे, जिसके कारण कॉलेज और निवासियों के बीच कानूनी विवाद उत्पन्न हुआ।

बाद में, कॉलेज ने कुछ हिस्से उन निवासियों को बेच दिए, लेकिन इस बिक्री में यह उल्लेख नहीं था कि यह वक्फ संपत्ति है। 2019 में, केरल वक्फ बोर्ड ने इसे वक्फ संपत्ति के रूप में रजिस्टर किया, जिसे वक्फ संरक्षण समिति के सदस्यों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

वक्फ संपत्ति की घोषणा पर सवाल

कोर्ट ने कहा कि केरल वक्फ बोर्ड ने इस भूमि को केवल इसलिए वक्फ संपत्ति घोषित किया क्योंकि दस्तावेज पर वक्फ डिक्लेरेशन था, जबकि आवश्यक शर्तें पूरी नहीं की गई थीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि बोर्ड ने उन निवासियों की बात नहीं सुनी, जिन्होंने वर्षों से इस भूमि पर निवास किया और जिन्होंने इसे कॉलेज से खरीदा था।