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कानपुर के लेखपाल की 9 साल की योजना का भंडाफोड़, संपत्ति की जांच शुरू

कानपुर के लेखपाल आलोक दुबे की 9 साल की योजना का भंडाफोड़ हो गया है। उन्होंने रिंग रोड के निर्माण की जानकारी का फायदा उठाकर दो गांवों की जमीनें खरीदीं, लेकिन अब उनकी संपत्तियों की जांच शुरू हो गई है। जानें कैसे उनकी चालाकी ने उन्हें मुसीबत में डाल दिया और जिला प्रशासन ने उनके खिलाफ कार्रवाई की तैयारी कर ली है। इस मामले में कई सवाल उठ रहे हैं, जो आपको जानने चाहिए।
 

लेखपाल की होशियारी बनी मुसीबत


कहावत है कि कभी-कभी अधिक चालाकी भी भारी पड़ सकती है। उत्तर प्रदेश के एक लेखपाल के साथ ऐसा ही हुआ। कानपुर के एक लेखपाल ने पैसे को चार गुना करने के प्रयास में ऐसा कदम उठाया कि वह जांच के दायरे में आ गया। उसने 2016 में दो गांवों की जमीनें बेहद कम कीमत पर खरीदीं, क्योंकि उसे जानकारी थी कि वहां एक रिंग रोड का निर्माण होने वाला है, जिससे जमीन की कीमतें बढ़ने वाली थीं।


इस लेखपाल ने कुल 41 संपत्तियों का अधिग्रहण किया, जिनमें से 29 उसके नाम पर थीं, जबकि बाकी उसकी पत्नी और बच्चों के नाम पर थीं। एक संपत्ति की बिक्री से उसे चार गुना लाभ हुआ, जिससे उसे लगा कि वह जल्द ही अरबपति बन जाएगा। लेकिन उसकी 9 साल की योजना का सच सबके सामने आ गया।


इस लेखपाल का नाम आलोक दुबे है। पहले वह कानूनगो था, लेकिन बाद में उसे लेखपाल बना दिया गया। उसने रिंग रोड के लिए जमीन अधिग्रहण में गड़बड़ी की। रिंग रोड के प्रस्तावित मार्ग की जानकारी पहले से होने के कारण, उसने दूल और रौतेपुर गांव में करोड़ों की संपत्ति खरीदी।


हालांकि, अधिग्रहण में उसकी केवल एक संपत्ति को शामिल किया गया, जिसके लिए उसने एक करोड़ का मुआवजा प्राप्त किया। रिंग रोड और न्यू कानपुर सिटी के लिए 450 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया गया, जिसमें 1250 करोड़ का मुआवजा भी शामिल है, जो अब संदेह के घेरे में है।


आलोक ने ज्यादातर संपत्तियां दूल और रौतेपुर गांव में खरीदीं, जो रिंग रोड के प्रस्तावित मार्ग पर स्थित हैं। सभी लेन-देन 2016 के बाद शुरू हुए, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उसे रिंग रोड के बारे में पहले से जानकारी थी। हालांकि, अधिग्रहण में उसकी केवल एक संपत्ति आई, जिसके लिए उसने चार गुना मुआवजा लिया।


आय से अधिक संपत्ति का मामला


इसके बावजूद, उच्च अधिकारियों ने इस मामले को दबाए रखा। आलोक दुबे की इस गतिविधि ने रिंग रोड और न्यू कानपुर सिटी के अन्य भूमि अधिग्रहण पर सवाल उठाए हैं। अब जिला प्रशासन ने उसके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति की जांच शुरू कर दी है। विजिलेंस की गुप्त जांच चल रही है, और उसके खिलाफ जल्द ही बड़ी कार्रवाई की जा सकती है।


आलोक दुबे की गिरफ्तारी का कारण


सूत्रों के अनुसार, आलोक के खिलाफ संदीप सिंह की शिकायत पर जांच समिति का गठन किया गया, जिसमें एडीएम (न्यायिक), एसडीएम सदर और एसीपी कोतवाली शामिल थे। जांच में पाया गया कि कुछ भूमि न्यायालय में विचाराधीन थीं, और विक्रेता का नाम खतौनी में नहीं था। फिर भी, 11 मार्च 2024 को वरासत दर्ज कर उसी दिन बैनामा कर दिया गया। इसके बाद गाटा 207 को 19 अक्टूबर 2024 को RNG इंफ्रा नामक निजी कंपनी को बेच दिया गया। यह गलती आलोक के लिए भारी पड़ गई।


SDM स्तर पर चल रही कार्रवाई


जांच में यह स्पष्ट हुआ कि यह मामला पद के दुरुपयोग, मिलीभगत और हितों के टकराव का है। मार्च 2025 में थाना कोतवाली में एफआईआर दर्ज की गई थी। विभागीय जांच निलंबन के साथ शुरू हुई और चार आरोपों वाला आरोपपत्र मार्च 2025 को जारी किया गया। अगस्त 2025 में आरोपी की व्यक्तिगत सुनवाई हुई। जांच अधिकारी ने पाया कि आलोक दुबे ने विवादित भूमि का अनुचित तरीके से बैनामा किया और सरकारी आचरण नियमों का उल्लंघन किया। आलोक दुबे के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रक्रिया एसडीएम सदर स्तर पर चल रही है। जिलाधिकारी ने स्पष्ट किया कि राजस्व प्रणाली में किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।