काकभुशुण्डि की कथा: इच्छा मृत्यु के स्वामी का रहस्य
काकभुशुण्डि की कथा
काकभुशुण्डि की कथा
काकभुशुण्डि की कथा: रामायण, हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें भगवान राम की लीलाओं का वर्णन किया गया है। इसमें कई दिव्य पात्रों का उल्लेख है, जो समय की सीमाओं से परे हैं। इनमें से एक हैं काकभुशुण्डि जी। तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस के उत्तरकांड में इनका दिव्य स्वरूप प्रस्तुत किया है। इनका रूप कौवे का है, लेकिन इनकी चेतना ब्रह्म ज्ञान से परिपूर्ण है। काकभुशुण्डि जी को पक्षी राज गरुड़ का गुरु और इच्छा-मृत्यु का स्वामी माना जाता है। आइए, इनके बारे में और जानें।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, काकभुशुण्डि अपने पिछले जन्म में एक ब्राह्मण थे। वे भगवान शिव के बड़े भक्त थे, लेकिन घमंड में आकर उन्होंने अपने गुरु का अपमान किया। इस कारण लोमेश ऋषि ने उन्हें श्राप दिया, जिससे वे कौवा बन गए। कौवे के रूप में आने के बाद, उन्होंने भगवान राम की भक्ति में लीन हो गए।
रामायण के अनुसार…
उन्होंने इस रूप को प्रभु की इच्छा मानकर स्वीकार कर लिया और नील पर्वत पर युगों तक रहे। उन्होंने रामकथा का रसपान किया और उसका वाचन किया। उनकी भक्ति इतनी गहरी थी कि पक्षी राज गरुड़ भी समाधान के लिए उनके पास गए थे। रामायण के अनुसार, मेघनाद द्वारा भगवान राम को नागपाश में बांधने के बाद गरुड़ ने उन्हें मुक्त किया था।
उस समय गरुड़ जी ने सोचा कि जो स्वयं नाशपाश में बंध जाए, वह कैलसे नारायण हो सकता है? इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें काकभुशुण्डि जी के पास जाने का निर्देश दिया। गरुड़ काकभुशुण्डि जी के पास पहुंचे और उन्होंने उन्हें राम कथा सुनाई, जिसमें बताया गया कि प्रभु की लीलाएं तर्क से परे होती हैं।
महादेव ने दिया इच्छा-मृत्यु का वरदान
काकभुशुण्डि जी के पास राम कथा सुनने स्वयं महादेव भी वेश बदलकर आते थे। उनकी भक्ति से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि काल भी उन्हें छू नहीं पाएगा। इसके साथ ही भगवान शिव ने काकभुशुण्डि जी को इच्छा-मृत्यु का वरदान दिया। इस वरदान के कारण काकभुशुण्डि जी कालजयी बन गए।
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