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कांतारा फिल्म में पंजुरली देवता की कहानी और उनकी प्रासंगिकता

कांतारा फिल्म में पंजुरली देवता की कहानी को दर्शाया गया है, जो दक्षिण भारत की लोककथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह देवता न केवल गांव और जंगल की रक्षा करते हैं, बल्कि फसलों और परिवार की भलाई में भी मदद करते हैं। फिल्म में वराह अवतार और गुलिगा देवता का भी उल्लेख है, जो इन देवताओं की प्रासंगिकता को दर्शाता है। जानें कैसे ये लोक विश्वास आज भी ग्रामीण जीवन में महत्वपूर्ण हैं और कैसे भूत कोला अनुष्ठान इनकी पूजा का एक अनूठा तरीका है।
 

पंजुरली देवता की कथा

‘पंजुरली’ देवता की क्या है कहानी?

पंजुरली देवता का महत्व: दक्षिण भारत में पनजूरली देवता की पूजा कर्नाटक और केरल में की जाती है। इन्हें सुअर के चेहरे वाले रक्षक के रूप में देखा जाता है। मान्यता है कि ये देवता न केवल गांव और जंगल की रक्षा करते हैं, बल्कि फसलों और परिवार की भलाई में भी मदद करते हैं।

वराह अवतार से संबंध

भगवान विष्णु के दस अवतारों में से वराह अवतार को तीसरा माना जाता है, और पनजूरली देवता इसी अवतार से जुड़े हुए हैं। पुराणों के अनुसार, वराह ने पृथ्वी माता को संकट से बचाया, और इसी प्रकार पनजूरली देवता मानवता और फसलों की रक्षा के लिए प्रकट हुए।

लोककथाओं में कहा जाता है कि पनजूरली देवता प्राचीन रक्षकों में से एक हैं, जो मानव जीवन के आरंभ से ही मौजूद थे।

कथा का सारांश

कथा के अनुसार, वराह देव के पांच पुत्र थे, जिनमें से एक नवजात बच्चा भूख और प्यास से तड़प रहा था। माता पार्वती ने उस पर दया दिखाई और उसे अपने पुत्र के समान पालना शुरू किया। कुछ वर्षों बाद, वह बच्चा विकराल वराह में बदल गया और फसलों को नष्ट करने लगा। इससे लोग संकट में पड़ गए।

भगवान शिव का निर्णय

जब भगवान शिव ने देखा कि पृथ्वी पर जीवन संकट में है, तो उन्होंने वराह को समाप्त करने का विचार किया। लेकिन माता पार्वती की प्रार्थना के बाद, शिव ने उसे कैलाश से पृथ्वी पर भेजा, जहां उसने मानवता और फसलों की रक्षा की। इस प्रकार, पनजूरली देवता के रूप में उनकी पूजा शुरू हुई।

गुलिगा देवता का योगदान

कांतारा फिल्म में गुलिगा देवता भी महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें शिव के गणों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, महादेव ने एक कंकड़ फेंका जिससे गुलिगा का जन्म हुआ। उनका स्वभाव उग्र था, और उन्हें मानवता की रक्षा के लिए पृथ्वी पर भेजा गया।

भूत कोला: एक अनूठा अनुष्ठान

भूत कोला एक पारंपरिक लोक अनुष्ठान है, जिसमें नर्तक देवताओं की आत्मा में प्रवेश करते हैं। इस नृत्य में पंजुरली और गुलिगा के बीच संघर्ष को दर्शाया जाता है। अंत में देवी दुर्गा उन्हें संतुलन बनाए रखने का आदेश देती हैं।

आधुनिक संदर्भ

फिल्म कांतारा ने इन देवताओं को आधुनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है, यह दर्शाते हुए कि कैसे लोक विश्वास और पौराणिक कथाएँ आज भी ग्रामीण जीवन और प्राकृतिक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण हैं। पनजूरली और गुलिगा न केवल लोकभूत हैं, बल्कि भगवान विष्णु, शिव और पार्वती से जुड़े पौराणिक कथाओं के प्रतीक भी हैं। उनकी पूजा और भूत कोला अनुष्ठान ग्रामीण जीवन में सुरक्षा और समृद्धि का संदेश देते हैं.