कांग्रेस सांसद शशि थरूर का वैवाहिक बलात्कार पर विधेयक: सामाजिक प्रभाव और चिंताएँ
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने लोकसभा में वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाने वाला विधेयक पेश किया है, जिससे भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण बहस छिड़ गई है। थरूर का मानना है कि विवाह के भीतर भी महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता का सम्मान होना चाहिए। हालांकि, इस विधेयक के संभावित सामाजिक प्रभाव और जटिलताएँ गंभीर चिंता का विषय हैं। क्या यह विधेयक वास्तव में महिलाओं के हित में है, या यह दांपत्य जीवन को अपराध की भाषा में बदलने का प्रयास है? जानें इस विधेयक के पीछे की मानसिकता और इसके संभावित परिणाम।
Dec 6, 2025, 12:02 IST
शशि थरूर का विधेयक और उसकी सामाजिक चुनौतियाँ
कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने लोकसभा में वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाने वाला एक निजी विधेयक पेश किया है, जिससे एक महत्वपूर्ण बहस शुरू हो गई है जो भारतीय समाज की नींव को चुनौती देती है। थरूर का मानना है कि विवाह के भीतर भी ‘ना का मतलब ना’ होना चाहिए और महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। यह विचार सुनने में प्रगतिशील लगता है, लेकिन इसके पीछे की जटिलताएँ और संभावित सामाजिक प्रभाव अधिक गंभीर हैं। जब मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और केंद्र सरकार ने चेतावनी दी है कि ऐसा कानून विवाह संस्था को अस्थिर कर सकता है, तब इस विधेयक का पेश होना राजनीतिक अवसरवाद का संकेत देता है।
विवाह भारतीय समाज की एक स्थायी संस्था है, जो केवल कानूनी अनुबंध नहीं है, बल्कि यह भावनात्मक बंधन और पारिवारिक जिम्मेदारियों का आधार है। ऐसे संबंधों में उत्पन्न समस्याओं को बलात्कार जैसे गंभीर अपराध के रूप में देखना संवेदनहीनता है और यह समाज के ताने-बाने को तोड़ने वाला कदम है। पति-पत्नी के बीच असहमति को तुरंत कानूनी दायरे में लाना दांपत्य जीवन को अपराध की भाषा में बदलने जैसा है। इससे हर दांपत्य विवाद में पुलिस का हस्तक्षेप सामान्य हो जाएगा। क्या यही भविष्य है जिसे हमारा समाज अपनाना चाहता है?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह विधेयक वास्तव में महिलाओं के हित में है? इसके समर्थक इसे महिलाओं के अधिकारों का विस्तार मानते हैं, लेकिन वास्तविकता कहीं अधिक जटिल है। भारत में पहले से ही घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न के खिलाफ मजबूत कानून मौजूद हैं। वैवाहिक बलात्कार को जोड़ने से न्याय प्रक्रिया और अधिक जटिल हो जाएगी। ‘सहमति’ की परिभाषा को निजी दांपत्य जीवन में लागू करना हास्यास्पद और खतरनाक है। इससे हर सामान्य भावनात्मक क्षण को ‘अपराध’ के दायरे में लाने का खतरा है।
केंद्र सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को निरस्त करने से विवाह संस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। यदि किसी पुरुष को अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने पर दंडित किया जाता है, तो इससे विवाह संबंधों में गंभीर गड़बड़ी हो सकती है। केंद्र ने यह भी कहा है कि तेजी से बदलते सामाजिक ढांचे में संशोधित प्रावधानों का दुरुपयोग संभव है। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि पति के पास पत्नी की सहमति का उल्लंघन करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन विवाह को बलात्कार से जोड़ना अत्यधिक कठोर है।
इस विधेयक के समर्थकों की मानसिकता पर विचार करते हुए, यह सवाल उठता है कि क्या वास्तव में वैवाहिक बलात्कार है? विवाह जैसे पवित्र रिश्ते को बलात्कार जैसे शब्द से जोड़ना भारतीय पारिवारिक व्यवस्था को नष्ट करने का प्रयास है। इस अभियान के पीछे वामपंथी विचारधारा के लोग हैं, जो भारतीय सामाजिक व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते। ऐसे लोग समाज में अशांति और असंतोष बनाए रखना चाहते हैं। शशि थरूर के व्यक्तिगत जीवन पर भी गौर करना चाहिए, जो कई विवाह कर चुके हैं।
यदि यह कानून बन गया कि पत्नी की असहमति से शारीरिक संबंध बनाना अपराध है, तो कितने परिवार बिखर सकते हैं? यदि किसी पत्नी ने अपने पति पर बलात्कार का मामला दर्ज कराया, तो पुलिस की कार्रवाई से परिवार में तनाव बढ़ेगा। पति-पत्नी के बीच प्यार और सम्मान कानून के डर से नहीं, बल्कि शिक्षा और जागरूकता से आता है। क्या हमारे पास इतने पुलिसकर्मी हैं कि वे हर घर में मौजूद रहें? क्या अदालतें ऐसे मामलों का बोझ उठाने के लिए तैयार हैं? ऐसे मामलों से परिवारों में अवसाद और अकेलापन बढ़ सकता है।
यह सही है कि महिलाओं को घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, लेकिन विवाह का मतलब यह नहीं है कि महिला ने अपनी हर इच्छा को त्याग दिया है। महिलाएं आज भी अपने अधिकारों के लिए पुलिस और अदालतों का सहारा ले सकती हैं। क्या हमें वैवाहिक बलात्कार की परिभाषा गढ़ने की आवश्यकता है? यह केवल विवाह संस्था को बदनाम करने का प्रयास है।
अंत में, यह स्पष्ट है कि भारतीय समाज को महिलाओं का सशक्तिकरण करना होगा और उनके अधिकारों की रक्षा करनी होगी। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता।