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कांग्रेस ने वंदे मातरम पर आरएसएस-बीजेपी पर उठाए सवाल

कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर आरएसएस और बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि ये संगठन कभी भी अपने कार्यालयों में वंदे मातरम नहीं गाते हैं और इसके बजाय अपने संगठन का महिमामंडन करने वाले गीत गाते हैं। श्रीनेत ने वंदे मातरम के ऐतिहासिक महत्व और कांग्रेस की भूमिका पर भी प्रकाश डाला। जानें इस मुद्दे पर और क्या कहा गया है।
 

सुप्रिया श्रीनेत का बयान

कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत. (फाइल फोटो)

कांग्रेस पार्टी की प्रवक्ता और सोशल मीडिया की चेयरपर्सन सुप्रिया श्रीनेत ने शुक्रवार को राष्ट्रीय गीत के 150 साल पूरे होने पर आरएसएस और बीजेपी पर तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि यह विडंबनापूर्ण है कि जो लोग आज राष्ट्रवाद के रक्षक होने का दावा करते हैं, उन्होंने कभी भी अपनी शाखाओं या कार्यालयों में वंदे मातरम नहीं गाया।

श्रीनेत ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि आज बड़े दावे करने वाले आरएसएस और बीजेपी ने कभी भी वंदे मातरम् या हमारे राष्ट्रगान जन गण मन का गायन नहीं किया। इसके बजाय, वे 'नमस्ते सदा वत्सले' गाते हैं, जो उनके संगठन का महिमामंडन करने वाला गीत है।

उन्होंने यह भी कहा कि आरएसएस ने 1925 में अपनी स्थापना के बाद से वंदे मातरम् से दूरी बनाई है। उनके ग्रंथों में इस गीत का कोई उल्लेख नहीं है। आरएसएस ने भारतीयों के खिलाफ अंग्रेजों का साथ दिया, 52 वर्षों तक राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया, और संविधान का अपमान किया।

कांग्रेस प्रवक्ता ने बताया कि 1896 से लेकर आज तक, कांग्रेस की हर बैठक में, चाहे वह बड़ी हो या छोटी, वंदे मातरम् और जन गण मन का गायन गर्व और देशभक्ति के साथ किया गया है। कांग्रेस इस गीत की गौरवशाली ध्वजवाहक रही है।

सुप्रिया श्रीनेत ने वंदे मातरम के ऐतिहासिक संदर्भों का भी उल्लेख किया। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित इस गीत ने 1905 में बंगाल विभाजन से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह लाला लाजपत राय के प्रकाशन का शीर्षक था और भीकाजी कामा के झंडे पर अंकित था।

वंदे मातरम पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की क्रांति गीतांजलि में भी शामिल है। इस गीत पर अंग्रेजों ने प्रतिबंध लगाया था क्योंकि यह स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया था।

1937 में, उत्तर प्रदेश विधानसभा ने वंदे मातरम का पाठ शुरू किया, और उसी वर्ष कांग्रेस ने इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी। महात्मा गांधी ने इसे बंटवारे के समय हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक शक्तिशाली युद्धघोष बताया था।

1938 में, पंडित नेहरू ने कहा कि यह गीत भारतीय राष्ट्रवाद से गहराई से जुड़ा हुआ है। 1896 में कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान, रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार सार्वजनिक रूप से वंदे मातरम गाया था, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में नई जान फूंक दी।