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कश्मीर में अटल सेतु पर भव्य आरती: सांस्कृतिक उत्सव का नया अध्याय

कश्मीर के बाशोली में अटल सेतु पर पहली बार भव्य आरती का आयोजन हुआ, जो घाटी में धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों के पुनरुद्धार का प्रतीक है। अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के बाद, कश्मीर में हिंदू त्योहारों का उत्साह बढ़ा है, जिससे सामाजिक सामंजस्य और पर्यटन को भी बढ़ावा मिला है। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि घाटी की सांस्कृतिक पहचान को भी पुनर्जीवित कर रहा है।
 

कश्मीर घाटी में धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों का पुनरुद्धार

कश्मीर के बाशोली में ऐतिहासिक आयोजन के तहत रवि नदी पर स्थित अटल सेतु पर पहली बार भव्य आरती का आयोजन किया गया। यह अवसर न केवल धार्मिक भक्ति का प्रतीक था, बल्कि यह कश्मीर घाटी में सांस्कृतिक जीवन के नये उत्साह का भी परिचायक बना। हम आपको बता दें कि कुछ समय पहले तक परंपरागत रूप से घाटी के हिंदू त्योहार छोटे स्तर पर मनाए जाते थे, लेकिन अब वहां की गलियों और घाटियों में बड़े पैमाने पर त्योहारों की धूम देखने को मिल रही है।




अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के बाद कश्मीर घाटी में एक नई सांस्कृतिक और सामाजिक ऊर्जा दिखाई दे रही है। लंबे समय तक राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा चुनौतियों के कारण घाटी के हिंदू समुदाय के त्योहार सीमित और निजी रूप से ही मनाए जाते थे। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। दशहरा, दिवाली, श्रीराम नवमी और अन्य प्रमुख तीज त्योहार बड़े उत्साह और धूमधाम के साथ मनाए जा रहे हैं। यह बदलाव केवल धार्मिक उत्सवों तक सीमित नहीं है; यह घाटी में सामाजिक सामंजस्य, पर्यटन और सांस्कृतिक पहचान के विस्तार का भी संकेत है।


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बाशोली में अटल सेतु पर आयोजित भव्य आरती इसका शानदार उदाहरण है। इस आयोजन में स्थानीय और दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने भाग लिया। आरती के दौरान रवि नदी पर दीपों की जगमगाती रोशनी ने घाटी को एक अनोखा धार्मिक और सांस्कृतिक अनुभव प्रदान किया। यह सिर्फ एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह घाटी में हिंदू संस्कृति और परंपराओं के पुनरुद्धार का प्रतीक बन गया।




देखा जाये तो विशेष रूप से तीज त्योहारों की बात करें तो अब वे स्थानीय समुदाय के जीवन में पुनः ऊर्जा भर रहे हैं। हरे रंग की रेशमी चुनर में झूमती हुईं महिलाएं, रंग-बिरंगी सजावट और मिठाईयों के बीच बच्चों की हँसी, इन त्योहारों ने घाटी के हर कोने में जीवन और उल्लास भर दिया है। यह बदलाव न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक नए आत्मविश्वास का परिचायक है।




हम आपको बता दें कि अनुच्छेद 370 की समाप्ति ने प्रशासनिक और राजनीतिक ढांचे में स्थिरता लाई, जिससे घाटी में धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों को बढ़ावा मिला। अब स्थानीय प्रशासन, सांस्कृतिक संस्थान और नागरिक समाज मिलकर त्योहारों को भव्य बनाने और सुरक्षित आयोजित करने में सक्रिय हैं। इसका सीधा लाभ स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यटन को भी मिल रहा है। मंदिर, घाट और सार्वजनिक स्थान सजाए जा रहे हैं और दूर-दूर से आने वाले पर्यटक और श्रद्धालु इन आयोजनों में भाग ले रहे हैं।




संपूर्ण कश्मीर में हिंदू त्योहारों की यह नई चमक समाज में सौहार्द्र और सांस्कृतिक समृद्धि का संदेश देती है। यह बताता है कि घाटी के लोग अब अपनी सांस्कृतिक धरोहर को खुले मन और उत्साह के साथ मनाने में सक्षम हैं। साथ ही, यह परिवर्तन घाटी में एक सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन का संकेत भी है, जहाँ समुदाय आपसी सम्मान और सह-अस्तित्व के मूल्यों को बनाए रखते हुए अपने परंपराओं का जश्न मना रहे हैं।




कहा जा सकता है बाशोली में अटल सेतु पर हुई भव्य आरती केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि कश्मीर में हिंदू त्योहारों के पुनरुद्धार और सामाजिक जीवन में नये उत्साह की शुरुआत का प्रतीक है। यह परिवर्तन इस बात का प्रमाण है कि स्थिरता और सुरक्षा के साथ, घाटी की सांस्कृतिक पहचान और परंपराएं भी पुनर्जीवित हो सकती हैं। भविष्य में यह आशा की जा सकती है कि कश्मीर की घाटी सभी समुदायों के लिए सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सवों का एक जीवंत केंद्र बनेगी।