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कल्पवास: 2026 में माघ माह की आध्यात्मिक साधना की विधि और नियम

कल्पवास, जो माघ माह में किया जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक साधना है। 2026 में इसका आरंभ 3 जनवरी से होगा और यह 1 फरवरी को पूर्णिमा के दिन समाप्त होगा। इस दौरान श्रद्धालु गंगा के तट पर रहकर भोग-विलास का त्याग करते हैं और केवल भगवान की आराधना में लीन रहते हैं। जानें इस पवित्र समय की विधि और नियम, जो आपको इस धार्मिक परंपरा के महत्व को समझने में मदद करेंगे।
 

कल्पवास के नियम

कल्पवास के नियमImage Credit source: Freepik

कल्पवास की जानकारी: हिंदू धर्म में माघ का महीना अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दौरान आध्यात्मिक साधना और आत्मशुद्धि का कार्य किया जाता है। इस माह में जप, तप, स्नान और दान का महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, माघ में किए गए ये कार्य अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं, जिसका फल कभी समाप्त नहीं होता।

माघ माह में कल्पवास की परंपरा का विशेष महत्व है। प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर श्रद्धालु इस समय कल्पवास करते हैं। 2026 में माघ का महीना 4 जनवरी से प्रारंभ होगा। आइए जानते हैं कि कल्पवास क्या है और इसके नियम और विधि क्या हैं।

कल्पवास की अवधि

2026 में कल्पवास की शुरुआत 3 जनवरी से होगी और इसका समापन 1 फरवरी को होगा, जो माघ माह की पूर्णिमा तिथि है। इस दिन परंपरागत रूप से कल्पवास का समापन होता है।

कल्पवास का अर्थ

कल्प का अर्थ एक निश्चित समय होता है, जबकि वास का अर्थ निवास करना है। आध्यात्मिक दृष्टि से, कल्पवास वह साधना है जिसमें व्यक्ति सांसारिक सुखों और मोह-माया से दूर रहकर केवल भगवान की आराधना में लीन रहता है। इसे गृहस्थ से वैराग्य की ओर अग्रसर होना भी कहा जाता है।

परंपरा के अनुसार, कल्पवास की शुरुआत पौष माह की पूर्णिमा से होती है, लेकिन श्रद्धालु अपनी क्षमता के अनुसार इसे करते हैं। कल्पवास संकल्प लेकर किया जाता है, जिसमें श्रद्धालु 5, 11 या 21 दिनों का संकल्प ले सकते हैं।

कल्पवास के नियम और विधि

कल्पवास को एक कठिन आध्यात्मिक अनुशासन माना जाता है। यह केवल गंगा के तट पर रहना नहीं है। कल्पवासी नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहते हैं और सांसारिक सुखों से दूर रहते हैं। वे केवल एक बार खुद से बनाया हुआ भोजन करते हैं, जो पूरी तरह से सात्विक होता है। हर दिन ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान और पूजा की जाती है।

कल्पवासी भोग-विलास का त्याग करते हैं और भूमि पर लेटते हैं। मन, वचन और कर्म से ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। इस दौरान नशा, क्रोध, झूठ और कटु वाणी बोलना वर्जित है। नियमित रूप से तुलसी पूजा, भजन-कीर्तन, संतों के सत्संग और धार्मिक ग्रंथों का पाठ किया जाता है।

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