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कर्नाटक हाई कोर्ट ने कन्नड़ भाषा की अनिवार्यता पर राज्य सरकार को दिया समय

कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्कूलों में कन्नड़ भाषा की अनिवार्यता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर राज्य सरकार को तीन सप्ताह का समय दिया है। याचिका में कन्नड़ भाषा शिक्षण अधिनियम और अन्य संबंधित नियमों को चुनौती दी गई है, जिसमें छात्रों के भाषा चयन के अधिकार का उल्लंघन होने का आरोप लगाया गया है। अदालत ने सरकार को जवाब देने के लिए समय दिया है, अन्यथा वे अंतरिम राहत पर विचार करेंगे। इस मामले में कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए गए हैं, जो शिक्षा प्रणाली पर प्रभाव डाल सकते हैं।
 

कर्नाटक हाई कोर्ट का निर्देश

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने स्कूलों में कन्नड़ भाषा को अनिवार्य बनाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर राज्य सरकार को जवाब देने के लिए अधिकतम तीन सप्ताह का समय दिया है। यह याचिका कर्नाटक के विभिन्न सीबीएसई और सीआईएससीई स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावकों द्वारा प्रस्तुत की गई थी। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश वी. कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति सी. एम. जोशी की पीठ ने 2023 में दायर इस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश जारी किया। अदालत ने यह भी कहा कि सरकार पिछले दो वर्षों से इस मामले में कोई जवाब नहीं दे पाई है, जिसके बाद उन्होंने कहा: "अपनी मशीनरी तैयार करो, अन्यथा हम अंतरिम राहत के आवेदन पर विचार करेंगे।


याचिका में उठाए गए मुद्दे

इस याचिका में कन्नड़ भाषा शिक्षण अधिनियम, 2015, कन्नड़ भाषा शिक्षण नियम, 2017, और कर्नाटक शैक्षणिक संस्थान (अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करना और नियंत्रण) नियम, 2022 को चुनौती दी गई है। इसमें उच्च न्यायालय के पूर्व आदेश का उल्लेख किया गया है, जिसमें डिग्री पाठ्यक्रमों में कन्नड़ को अनिवार्य करने वाले सरकारी आदेशों पर रोक लगाई गई थी। इसके साथ ही, भारत संघ द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण का भी हवाला दिया गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 किसी भी भाषा को थोपने का समर्थन नहीं करती है।


याचिकाकर्ताओं के तर्क

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये अधिनियम छात्रों को अपनी पहली, दूसरी और तीसरी भाषा चुनने के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। उनका यह भी कहना है कि ये अधिनियम शैक्षणिक परिणामों और भविष्य के रोजगार के अवसरों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं, साथ ही कन्नड़ के अलावा अन्य भाषाएँ पढ़ाने वाले शिक्षकों की आजीविका को भी खतरे में डाल सकते हैं। इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि ये अधिनियम कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 के नियम 6(1) के दायरे से बाहर हैं, जो सीबीएसई और सीआईएससीई स्कूलों पर गलत तरीके से लागू होते हैं।