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कर्नाटक विधानसभा ने पारित किया घृणा अपराध निवारण विधेयक, विपक्ष ने किया विरोध

कर्नाटक विधानसभा ने घृणा अपराध निवारण विधेयक, 2025 को पारित किया है, जिसके खिलाफ विपक्ष ने तीव्र विरोध किया है। गृह मंत्री जी परमेश्वर ने विधेयक के पीछे के कारणों का उल्लेख किया, जिसमें समाज में बढ़ते घृणास्पद भाषणों का जिक्र किया गया। विपक्ष के नेता आर अशोक ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए इसके दुरुपयोग की आशंका जताई। जानें इस विधेयक के प्रावधान और विपक्ष की चिंताएँ।
 

कर्नाटक विधानसभा में घृणा अपराध निवारण विधेयक का पारित होना

कर्नाटक विधानसभा ने विपक्ष के तीव्र विरोध के बीच घृणास्पद भाषण और घृणा अपराध निवारण विधेयक, 2025 को मंजूरी दे दी। इस दौरान सदन में कई बार व्यवधान उत्पन्न हुआ। गृह मंत्री जी परमेश्वर ने विधेयक की व्याख्या करते हुए बताया कि समाज को नुकसान पहुंचाने वाले बयानों में तेजी से वृद्धि हो रही है।


उन्होंने हत्याओं, हमलों और बढ़ते सामाजिक तनावों का उल्लेख करते हुए कहा कि हाल के समय में कई लोग ऐसे बयान दे रहे हैं जो समाज को आहत करते हैं। उन्होंने कहा कि नफरत धर्म, जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव से उत्पन्न होती है और इसे रोकने की आवश्यकता है। अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि भेदभाव और बहिष्कार केवल शब्द नहीं हैं।


विधेयक के प्रावधान और विपक्ष की चिंताएँ

जब मैं छोटा था, तो स्कूल जाते समय मुझ पर पानी फेंका जाता था। उन्होंने कहा कि बसवन्ना की शिक्षाओं के बावजूद, समानता अभी तक पूरी तरह से स्थापित नहीं हो पाई है। गृह मंत्री ने विधेयक के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए कहा कि यह कानून भाषणों, पुस्तकों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से घृणा फैलाने वाले व्यक्तियों या संगठनों को नियंत्रित करेगा।


इस विधेयक के तहत अधिकतम सात वर्ष की कैद और 50,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। विपक्ष के नेता आर अशोक ने इस विधेयक का विरोध करते हुए इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया। उन्होंने स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी ऐसे कानून की आवश्यकता पर सवाल उठाया और आरोप लगाया कि इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।


अशोक का आरोप और विधेयक की संभावित समस्याएँ

अशोक ने कहा कि इस विधेयक में जमानत का कोई प्रावधान नहीं है और चेतावनी दी कि इसके तहत पत्रकारों को भी जेल भेजा जा सकता है। उन्होंने इसे राजनीतिक प्रतिशोध का एक उपकरण बताया और कहा कि दोष साबित होने से पहले निर्दोष लोगों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।