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करवा चौथ 2025: भगवान शिव और पार्वती की कथा

करवा चौथ 2025 का पर्व विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं। जानें इस पर्व की पूजा विधि और भगवान शिव तथा माता पार्वती से जुड़ी पौराणिक कथा, जो इस व्रत का आधार है। यह कथा न केवल धार्मिक मान्यता को दर्शाती है, बल्कि सुहागिनों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।
 

करवा चौथ का महत्व

करवा चौथ 2025

करवा चौथ व्रत कथा: करवा चौथ हर साल कार्तिक माह के चौथे दिन मनाया जाता है, जो कार्तिक के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आता है। इस दिन विवाहित महिलाएं सूर्योदय से उपवास रखती हैं और चंद्रमा के उदय पर अपना व्रत तोड़ती हैं। यह व्रत मुख्य रूप से हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। आज, 10 अक्टूबर को, सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना कर रही हैं।

दिन के अंत में, महिलाएं चंद्रमा की पूजा करेंगी और अर्घ्य देंगी। इसके बाद उनके पति उन्हें जल पिलाकर व्रत का पारण करवाएंगे। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा की जाती है। इस दिन से जुड़ी एक कथा है, जिसे सभी सुहागिनों को पढ़ना चाहिए, ताकि उनकी सभी इच्छाएं पूरी हों।

भगवान शिव और पार्वती की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवी पार्वती ने भगवान शिव से पति की दीर्घायु और सौभाग्य प्राप्त करने का उपाय पूछा। शिवजी ने उन्हें करक चतुर्थी व्रत के बारे में बताया, जिसे आज करवा चौथ के नाम से जाना जाता है। शिवजी ने कहा कि इस व्रत के प्रभाव से स्त्री को सौभाग्य और पति को दीर्घायु प्राप्त होती है। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। इस दिन सुबह से लेकर चंद्र दर्शन तक निर्जला उपवास रखना चाहिए।

भगवान शिव ने पार्वती जी को बताया कि जो स्त्री इस व्रत को नियमपूर्वक करती है, वह अपने पति को मृत्यु के संकट से बचा सकती है। जब माता पार्वती ने चंद्रमा को अर्घ्य देने का कारण पूछा, तो शिवजी ने कहा कि चंद्रमा आयु का प्रतीक है। इस दिन जब चंद्रमा का दर्शन कर अर्घ्य दिया जाता है, तो यह स्त्री के सौभाग्य और पति की दीर्घायु को स्थिर करता है। पार्वती जी ने स्वयं यह व्रत किया और संसार को इसका संदेश दिया। इस प्रकार शिवजी ने करवा चौथ व्रत की महिमा बताई।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठिन तप और व्रत किया। उन्होंने कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को निर्जला उपवास रखा और शिव की आराधना की। उनकी अटल श्रद्धा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।