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ओवैसी का चुनावी अभियान: सीमांचल में नई राजनीतिक संभावनाएँ

असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार विधानसभा चुनावों की तैयारी में किशनगंज से अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की है। उन्होंने क्षेत्र में विभिन्न सार्वजनिक कार्यक्रमों की योजना बनाई है और नए राजनीतिक गठबंधनों की संभावनाओं पर भी चर्चा की है। सीमांचल में मुस्लिम आबादी की अच्छी खासी संख्या है, जो एआईएमआईएम के लिए राजनीतिक रूप से अनुकूल है। ओवैसी का यह कदम राजद के लिए चुनौती पेश कर सकता है, खासकर जब से पार्टी का प्रभाव धीरे-धीरे कम हो रहा है। जानें इस चुनावी अभियान के पीछे की रणनीतियाँ और ओवैसी की योजनाएँ।
 

असदुद्दीन ओवैसी का चुनावी आगाज़

बिहार विधानसभा चुनावों की तैयारी में, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेता और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी आज किशनगंज में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करेंगे। ओवैसी ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर एक दिन पहले अपनी योजनाओं का खुलासा किया, जिसमें उन्होंने क्षेत्र में विभिन्न सार्वजनिक कार्यक्रमों और रैलियों का एक विस्तृत कार्यक्रम साझा किया। उन्होंने अपने संदेश में नए राजनीतिक गठबंधनों और समीकरणों का भी संकेत दिया।


ओवैसी की योजनाएँ और क्षेत्रीय राजनीतिक समीकरण

ओवैसी ने कहा कि वह किशनगंज पहुँचेंगे और 27 सितंबर तक सीमांचल में रहेंगे। उन्होंने कई नए मित्र बनाने और स्थानीय नेताओं से मिलने की इच्छा व्यक्त की। यह बयान इस ओर इशारा करता है कि ओवैसी, जिन्हें इंडिया गठबंधन से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, अब सीमांचल में क्षेत्रीय राजनीतिक साझेदारी की संभावनाएँ तलाश रहे हैं।


लगभग डेढ़ महीने पहले, एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने इंडिया ब्लॉक के नेताओं को एक पत्र लिखा था, जिसमें सीमांचल के विकास की कमी पर ध्यान केंद्रित किया गया था और एनडीए के खिलाफ एकजुट होने का आग्रह किया गया था। हालांकि, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।


एआईएमआईएम का सीमांचल में प्रभाव

ओवैसी के अभियान से पहले, एआईएमआईएम की बिहार इकाई ने अपने समर्थकों से अपील की है कि वे सीमांचल में लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय रूप से भाग लें। सीमांचल में किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जैसे चार जिले शामिल हैं, जहाँ मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है। यह जनसांख्यिकी एआईएमआईएम के लिए राजनीतिक रूप से अनुकूल है।


हालांकि, सीमांचल पारंपरिक रूप से राजद का गढ़ रहा है। तस्लीमुद्दीन जैसे कद्दावर नेता के निधन के बाद, राजद का प्रभाव धीरे-धीरे कम हुआ है, लेकिन इसका एक महत्वपूर्ण आधार अब भी बना हुआ है। एआईएमआईएम का सीमांचल में प्रवेश राजद के लिए राजनीतिक परिदृश्य को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना रहा है।


2020 के चुनावों में एआईएमआईएम की सफलता

2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में, एआईएमआईएम ने सीमांचल क्षेत्र में पाँच सीटें जीतकर एक मजबूत शुरुआत की। इससे पहले, 2015 में, पार्टी ने किशनगंज उपचुनाव में असफलता का सामना किया था। 2020 में, इसने चार सीमांचल जिलों की 24 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और पाँच निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल की, जिससे इसकी राजनीतिक विश्वसनीयता में वृद्धि हुई।


हालांकि, 2022 में, एआईएमआईएम के सभी चार विधायक राजद में शामिल हो गए, जिससे पार्टी की स्थिति कमजोर हुई। इसके बावजूद, एआईएमआईएम ने धर्मनिरपेक्ष वोटों को विभाजित होने से रोकने के लिए महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की है, लेकिन यह प्रयास अभी तक सफल नहीं हो सका।