एम्स में जेंडर डिसऑर्डर के मामलों की बढ़ती संख्या और उनका उपचार
बच्चों में जेंडर डिसऑर्डर की पहचान
हाल ही में एक 10 दिन का बच्चा एम्स की ओपीडी में आया, जो एक गरीब परिवार से था। बच्चा बीमार और डिहाइड्रेटेड था। उसके माता-पिता ने उसे लड़की की तरह रखा था, लेकिन उसके जननांग में कुछ असामान्यताएँ थीं। जांच में पता चला कि उसके सोडियम का स्तर कम और पोटेशियम का स्तर अधिक था। अल्ट्रासाउंड के बाद डॉक्टरों ने बताया कि यह बच्चा लड़की है, लेकिन भविष्य में कुछ सर्जरी की आवश्यकता होगी।
करीब 10 दिन बाद, वही बच्चा फिर से एम्स में आया, लेकिन इस बार उसे किन्नरों ने लाया। उन्होंने बताया कि बच्चा शॉक में है। डॉक्टरों ने बच्चे को पहचाना और उसका इलाज किया। हालांकि, उसके माता-पिता ने उसे अपनाने से मना कर दिया। अंततः बच्चे को चाइल्ड केयर होम भेजा गया। डेढ़ साल की उम्र में, उसे एक विदेशी नागरिक ने गोद ले लिया और अब वह पूरी तरह स्वस्थ है।
जेंडर डिसऑर्डर ऑफ सेक्स डेवलपमेंट (DSD) क्या है?
डॉ. वंदना जैन, जो एम्स में पीडियाट्रिक एंडोक्राइनोलॉजी की प्रोफेसर हैं, बताती हैं कि DSD एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चे का जेंडर स्पष्ट नहीं होता। यह बीमारी लगभग 150 जेनेटिक कंडीशंस के कारण होती है और हर 4 से 5000 बच्चों में से एक में देखी जाती है। इसके लक्षण बचपन में या किशोरावस्था में सामने आ सकते हैं।
लक्षणों में शामिल हैं, लड़कियों में पीरियड का न आना और लड़कों में टेस्टीज का विकास न होना। यह स्थिति कभी-कभी जानलेवा भी हो सकती है, क्योंकि इसके पीछे गंभीर बीमारियाँ छिपी हो सकती हैं।
एम्स में DSD के मामलों की संख्या
एम्स के निदेशक डॉ. एम श्रीनिवास ने कहा कि जन्म के समय बच्चे का जेंडर निर्धारित करने में कुछ मामलों में संदेह होता है। ऐसे मामलों में विभिन्न जांचों की आवश्यकता होती है। जेंडर का निर्धारण जीन, फेनोटाइप और विचार के आधार पर किया जाता है।
एम्स में DSD के लिए एक विशेष क्लिनिक है, जहां पीडियाट्रिक सर्जन, साइकेट्रिस्ट और एंडोक्राइनोलॉजिस्ट की टीम बच्चों का इलाज करती है।
पेरेंट्स के लिए सलाह
डॉ. श्रीनिवास ने कहा कि यदि बच्चे के जेंडर का पता नहीं चल पा रहा है, तो पेरेंट्स को निराश नहीं होना चाहिए। उन्हें डॉक्टरों से संपर्क करना चाहिए। एम्स में एक समर्पित टीम है जो सभी पहलुओं का ध्यान रखती है।
डॉ. राजेश सागर ने बताया कि इस बीमारी के बारे में सामाजिक कलंक के कारण लोग खुलकर बात नहीं करते। हालांकि, यह एक सामान्य स्थिति है और इसका इलाज संभव है। एम्स में काउंसलिंग की जाती है ताकि पेरेंट्स और बच्चों को इस स्थिति को समझने में मदद मिल सके।