×

एचआईवी मामले में मानवाधिकार आयोग के सदस्य और जिला प्रशासन के बीच विवाद

सतना में एचआईवी संक्रमित रक्त चढ़ाने के मामले को लेकर मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो और जिला प्रशासन के अधिकारियों के बीच तीखी बहस हुई। प्रियंक ने आरोप लगाया कि प्रशासन मामले को दबाने की कोशिश कर रहा है। पीड़ितों के परिवार के सदस्य सुबह सर्किट हाउस नहीं पहुंचे, जिससे प्रियंक नाराज हो गए। इस विवाद में कई महत्वपूर्ण सवाल उठ रहे हैं, जैसे कि क्या पीड़ितों को इस तरह से बुलाना उचित था। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और इसके पीछे की सच्चाई।
 

सतना में एचआईवी संक्रमित रक्त चढ़ाने का मामला

सतना
रविवार को एचआईवी संक्रमित रक्त चढ़ाने के मामले में मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो और जिला प्रशासनिक अधिकारियों के बीच तीखी बहस हुई। प्रियंक कानूनगो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर आरोप लगाया कि जिला प्रशासन मामले को दबाने की कोशिश कर रहा है। दरअसल, प्रियंक कानूनगो उस समय नाराज हुए जब एचआईवी कांड के पीड़ित अपने परिवार के साथ सुबह सात बजे सर्किट हाउस में उपस्थित नहीं हुए।


इस पर प्रियंक कानूनगो ने सिटी एसडीएम और सीएमएचओ पर नाराजगी जताई और कहा कि उन्हें खुद वहां लाना चाहिए था। हालांकि, सीएमएचओ डॉक्टर मनोज शुक्ला ने बताया कि पीड़ित के परिवार के सदस्य ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं और सुबह सात बजे आने में असमर्थ थे। वे दस बजे के बाद आने के लिए तैयार थे, लेकिन प्रियंक कानूनगो ने उनकी बात सुनने से इनकार कर दिया।

रात को भेजा गया संदेश
जिला प्रशासन के अधिकारियों के अनुसार, प्रियंक कानूनगो ने कटनी में अपने प्रवास के दौरान रात नौ बजे सिटी एसडीएम को संदेश भेजा कि उन्हें सुबह सात बजे एचआईवी ब्लड चढ़ाने वाले पीड़ितों से मिलना है। जब सुबह पीड़ित सर्किट हाउस नहीं पहुंचे, तो प्रियंक कानूनगो ने प्रशासनिक अधिकारियों पर नाराजगी जताई। सिटी एसडीएम ने बताया कि परिवार ने सुबह आने में असमर्थता जताई थी, इसलिए उन्हें घर जाकर मिलने का सुझाव दिया गया।


प्रियंक कानूनगो को सुबह आठ बजे दीनदयाल शोध संस्थान में मानवाधिकार पर एक कार्यक्रम में शामिल होना था, इसलिए उन्होंने मामले को दबाने के आरोप लगाते हुए चित्रकूट के लिए प्रस्थान किया।


कोई आधिकारिक कार्यक्रम नहीं था
प्रियंक कानूनगो का एचआईवी पीड़ितों से मिलने का कोई आधिकारिक कार्यक्रम नहीं था। अब सवाल उठ रहा है कि क्या पीड़ित बच्चों के परिजनों को इस तरह से बुलाना उचित था। असल में, मानवाधिकार आयोग की टीम पीड़ितों के बयान लेने के लिए 29 को आने वाली है।


प्रमुख सवाल
- क्या इस तरह से सार्वजनिक रूप से सर्किट हाउस बुलाना उनकी पहचान उजागर करने जैसा नहीं है?
- क्या बिना पूर्व सूचना के पीड़ित को इस तरह बयान के लिए बुलाया जा सकता है?
- बिना जांच टीम में शामिल हुए, क्या मानवाधिकार आयोग के सदस्य इस तरह पीड़ितों के बयान दर्ज कर सकते हैं?


हमें रात में सूचना मिली कि उन्हें सुबह सात बजे पीड़ितों और उनके परिवारों से मिलना है, लेकिन पीड़ितों के परिवार के सदस्य इतनी सुबह मिलने को तैयार नहीं थे। हालांकि, उनके आधिकारिक यात्रा कार्यक्रम में इस बात का उल्लेख नहीं था। - राहुल सिलाढिया, सिटी एसडीएम।